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(२) बारहवें गु० वाले सं० गुणे (१०८) क्षपक श्रेणि .. (३) ८-९-१० गु० वाले परस्पर तुल्य विशेषा प्र० सो (१) तेरहवें गु० वाले सं० गु० प्रत्येक क्रोड जीवों। (५) सातवें गु० वाले सं० गुरु प्रत्येक सो क्रोड। (६) छठे गु० वाले सं० गु: प्रत्येक हजार क्रोड । (७) पांचवे गु० वाले असं. गु. तीर्यंचापेक्षा (८) दूजे गु० वाले असं० गु० ( विकलेन्द्री अपेक्षा) (९) तीजे गु० स्थान वाले असं० गु० ( चारगती अपेक्षा) (१) चौथे गु० वाले असं० गु. ( सम्यक्त्व. दृष्टी अपेक्षा) (११) चौदवें गु० वाले अनं० गु. ( सिद्धापेक्षा) (१२) पहिले गु वाले अनं० गुः ( एकेन्द्रिीय अपेक्षा) .
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नं० १०६
श्री पन्नवणा सूत्र पद १८
(काय स्थिती) . स्थिति दो प्रकारकी होती है भव स्थिति और काय स्थिति । याने एक ही भवसे जितना काल रहे उसको भव स्थिति कहते है। जैसे पृथ्वीकायमें ज. अन्तर मुहूर्त उ० २२००१ हजार वर्ष तक रहे । काय स्थिति-जिस कायमें जन्ममरण करे परन्तु दुसरी कायमें जब तक उत्पन्न न हो उसको काय स्थिति कहते है। जैसे पृथ्वीकायसें मरके फिर पृथ्वीकायमै