________________
१७१
ख्यात चार आवे दूसरा पांच बार आवे तीजा चोथा गु. असं० बार आवे, पांचवा छट्ठा सातवा, प्रत्येक हजार वार आवे आठवा नौधा दशवा गु० नौ वार आवे. इग्यारवा गु० पांच वार आवे. बारहवा तेरहवा चौदहवा एक धार आवे इति ।
(५०) अवगाहनाद्वार--जघन्यापेक्षा, पहले से चोथे गु० तक अंगुलके असंख्यातमे भाग पांचवे से चौदह ग. तक प्रत्येक हाथकि । उत्कृष्टापेक्षा पहले से चोथे गु० एकहजार योजन साधिक. पांचवे गु० से चौदहवे गु० तक पांचसो धनुष्यकि अवगाहना है इति।
(५१) स्पर्शनावार- - एक जीवापेक्षा पहले गु० ज० अंगु. लके असं० भाग उ० चौदहराज दूसरे गुजः अण्लके असं० भाग उ छेराज उचा. तीसरे गुजः अंगुलछेराज उंचा. चोथा गुलज. अंगु उ० निचा राजा उंचा पांचराज। पांचवेसे चौदहवे तक ज० प्रत्येक हाथ उ· पांचवे गु निचो उचो पांचराज. छठे गु. से इग्यारवे गु. तक निचो चारराज उंची सातराज बारहवे चौदहवे पांचसी धनुष्य. तेरहवे गु. सर्व लोकको स्पर्श करे । घणा जीवों कि अपेक्षा पहला गुणस्थान ज. उ. सर्व लोक स्पर्श करे, दूसरे गु० ज० अंगुलके असंख्यातमे भाग उ० दशराज, तीसरे गु० ज० अ० उ० सातराज. चोथे गु, ज० लोकके असं० भाग उ० आठराज. पांचवे गु० से चौदहवे गु० ज० लोकके असं० भाग० उ० इग्यारवे गु० तक सात राज. बारहवा लोक के असं० भाग. तेरहवा सर्वलोक स्पर्शे चौदहवा गु० लोकके असंख्यातवे भाग का क्षेत्र स्पर्श करे इति ।
(५२) अल्पाबहुत्व द्वार(१) सबसे स्तोक इग्यारवे गु० उपशम श्रेणीवाले ५४ है