________________
१७३
उत्पन्न हों इसी तरह एक ही कायमें वारंवार जन्ममरण करे । "तो असंख्याते काल तक रह सके उसे काय स्थिति कहते है ।
सूचना.
१ पुढवीकाल - द्रव्य से असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल, क्षेत्र से असंख्याते लोक || काल से असंख्या काल और भाव से अंगुल के असं० भाग में जितने आकाश प्रदेश हो उतने लोक ।
२ असंख्याते काल- द्रव्य से क्षेत्र से काल से तो पूर्ववत् और भाव से आवलीका के असं भागमें जितना समय हो उतना लोक |
"
३ अर्द्ध पुगल परावर्तन-जैसे द्रव्य से अनन्ती उत्स अवस० क्षेत्र से अनन्ता लोक, कालसे अनंतोकाल भाव से अर्द्ध पुद्गल परावर्तन
४ वनस्पति काल- द्रव्य से अनंती सर्पिणि उत्सर्पिणि क्षेत्र से अनंतेलोक, कालसे अनंतोकाल. भावसे असंख्याता पुद्गल परावर्तन |
५ अ अ:- अनादि अनन्त । ७ अ० सा० - अनादिसान्त | ६. सा० अ-सादि अनन्त । ८ सा० सा०-- सादिसान्त |
गाथा -- जीवं गैइदिये काऍ जोए वेद कसायें लेसार्य ।
सम्मत्तणीय दंसणं संजमे उपयोग चहारे ।। १४ । भोसंग परिते पसु सन्नी भवं तिथे ' चरिमेये । एसित पदाणं कायठिई होइ गायव्वा || २ ||