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ध्यान, धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान । १-२-३ गु० में ध्यान दो आत० रौद्र० तथा ४-५ गु० तीन ( आत० रौद्र० धर्म ध्यान ) छठे गु० आर्त० धर्म ध्यान । सातमें गु० में धर्म ध्यान और शेष गु. में केवल शुक्ल ध्यान है।
(३६) हेतुद्वार-हेतु ५७ है. कषाय २५ योग १५ अवृत १२ ( ५ इन्दी ६ काय १ मन) और मिथ्यात्व ५ पचवीस प्रकार से नं० ११ से १५ ) एवं ५७ हेतु । पहिले गु० में पंचावन (आहारक आहारीक मिश्र वर्ज के)। दूजे गु० मे पचास ( पांच मिथ्यात्व वर्जके)। तीजे गु० ४३ हेतु ( अनंतानु बन्धी चौक और तीन योग' वर्जके ) चौथे गु० ४६ हेतु ( तीन योग' वधीया ) पांचव गु. ३९ हेतु : अप्रत्यार यानी चौक, औदारिक मिश्र, कार्मण योग और अस जीवोंकी अवृत्त टली ) छ? गु० २६ हेतु-यहां आहारक मिश्र योग बधा और अवृत्त ११ प्रत्याख्यानी चौक घटा। सातमे ग० २४ हेतु- ( वैक्रिय मिश्र, आहारक मिश्र वर्जके । आठवें गु० २२ हेतु. ( आहारक; वैक्रिय योग वर्जके ) नौव गु०१६ हेतु ( हास्यछक वर्ज के ) दशवें गुरु नौ योग १ संज्वल लोभ एवं १० हेतु । ११-९२ गु० हेतु नौ नौयोग) तेर। गु० ५-७ हेतु ( योग ) चौदमें गु० अहेतु।
(४०) मार्गणाद्वार-एक गुणस्थानसे दूसरे गुणस्थान नाना उसको मार्गणा कहते है-पहिले गु० की मार्गणा ४ पहिले गुरू वाले ३-४-५-७ गु० जावे । दसरे ग० बाला मिथ्यात्व ग में आवे. तीजे गु० वाला १.४ गुल में जावे । चौथे गु०वाला १-२३-५-७ गु० में जाये। पांचवें गु० वाला १-२-३-४-७ गु० में मावे । छठे गु० वाला १-२-३-४-५-७ गु० में जावे । सातमें गु० पाला ४-६-८ गु० जावे : आठमें गु० वाला ७-९-४ गु० में नावे। १ औदारिक मिश्र, वैक्रिय मिश्र और कार्मण ।