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१६६ (३३) दर्शन द्वार-प्रथमसे बारहवे गु० तक तीन दर्शन तेरवे, चौदवें एक केवल दर्शन ।
(३४) सम्यक्त्व द्वार-सम्यक्त्वके ५ भेद-क्षायक, क्षयोपशम, उपशम, वेदक, और सास्वादन । पहिले और तीसरे, गु० सम्यक्त्व नहीं, दूसरे गु० सास्वादन स० । चौथासे सातवें गु० स० चार. सास्वादन वजेके । नौवे गुणस्थान दशवें गु इग्यारवे गु० दो स. (क्षा० उप. ) और १२-१३-१४ गु० एय क्षायक सम्यक्त्व है।
(३५) चारित्रद्वार--चारित्रके ५ भेद. सामायकादि१-२-३-४ गुल में चारित्र नहीं ( पांच वे गु० चारित्राचारित्र छ? सातमें गु० में तीन चारित्र ( सामा छेदों० परि०) आठवें नौमे गदो चारित्र (सामा० छेदो० ) दशमे गु० सुक्ष्मसम्परार चारित्र, और ११-१२-१३-१४ मे गु० मे यथाख्यात चारित्र ।
(३६) नियंट्टाद्वार-नियंटाके छे भेद-पुलाक, बुकस पडि सेवन, कषाय कुशील, निग्रन्थ और स्नातक । प्रथमसे पांचवें गु० तक नियंट्ठा नहीं। छठे, सातव गु० नियंट्ठा चार क्रमशः । आठवें, नौवे. गु० नियंठा तीन बु०प० क. ) दशवें गु. में कषाय कुशील । ११--१२ गु० में निग्रन्थ और १३--१४ गुः में स्नातक नि०
(३७) समौसरण द्वार-समौसरण के चार भेद-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी । पहिले गु. में स० तीन (क्रिया वादी नही) तीजे गु में दो अज्ञानवादी और विनयवादी । शेष बारों ही गु० में समोसरन १ क्रियावादी ।
(३८) ध्यानद्वार-ध्यानके चार भेद-आर्तध्यान, रोट