________________
१६२
(५) उदयद्वार--प्रथमसे दशवें गुरु तक आठों कोका उदय तथा ११-१२ गुः सात कोका उदय मोहनीय वर्जके और १३-१४ गु० चार अघाती कर्मों का उदय वेदनी: नाम गोत्र आयुष्य ।
. (६) उदीरणा द्वार--प्रथमसे तीसरा मु० वर्जके छठे ग० तक ७-८ कर्म उदोरे०( आयुष्य वर्जके ) तीजे गु. सात कर्म उदरे ७-८-९ में गु० छे कर्म उदीरे आयु. वेदनी वर्जके। दशमें गु. ५-६ कर्भ उदीरे [पांववालामोहः वर्जे ] इग्यारवें गु० पांच कर्म उदीरे । बारवें गु. पांच या दो उदीरे (दोवाला नाम० गोत्र ) और १३-१४ वें उदोरणा नहीं है।
(७) सत्ता द्वार-प्रथमसे इग्यारवें गु. तक आठों कर्मों को सत्ता है। बारहवें गु० सात कर्मको सत्ता मोहनी. वर्नके और १३-१४ गु. चार अघाति कर्मकी सत्ता है।
(८) निर्जरा द्वार-प्रथमसे दशवां गु. तक आठों कर्मोंकी निर्जरा तथा ११-१२ में गु० सात कर्मों की [ मोहनी वर्जके ] और १३-१४ गु० चार अघाति कर्मों की निर्जरा होती है।
(8) आत्मा द्वार-आरमा ८ प्रकारका है द्रव्यात्मा; कषाय योग उपयोग ज्ञान दर्शन चारित्र और वीर्यात्मा। प्रथम और तीजे गु. छे आत्मा । ज्ञान. चारित्र वर्जके ] तथा २.४ गु. ७ आत्मा [चारित्र वर्जके ] तथा पांचमेसे दशमे गु० तक आठों आत्मा तथा ११-१२-१३ में आत्मा सात [कषाय वर्जके ] और चौदमें गु० छे आत्मा [ कषाय, योग वर्जके )
(१०) कारण द्वार-कारण पांव-मिथ्यात्व, अवत, प्रमाद केषाय और योग । प्रथम और तीजे गुः पांचों कारण। २-४ गुरु में चार मिथ्यात्व वर्जके । ५-६ गु. में तीन [ अव्रत छोड के ||