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१६० क्षय करे वह क्षपक श्रेणी करता है। पन्द्रह प्रकृति पूर्व कही और हास्य, रती, अरती, शोक, भय, जुगुप्सा एवं २१ प्रकृतिका क्षय करके नौवें गु० को प्राप्त करता है।
__(8) अनिवृत्ति बादर गु० लक्षण-इस गु० में बी वेद, पुरुषवेद, नपुंसक वेद और संज्वलकात्रिकको क्षय करे।
(१) क्रोध-पानीकी लकीर समान । (२) मान-तृणका स्थंभ समान । ' (३) माया-वांसकी छोल समान ।
यह त्रिक यथाख्यात चारित्रका घातीक है, स्थिती क्रोधको दो मासकी, मानकी एक मासकी, मायाकी पन्द्रह दिनकी और गती देवताकी एवं कुल २७ प्रकृती क्षय या उपशम करनेसे दशव गु० को प्राप्त करता है।
(१०) सुक्ष्मसंपराय गु० का लक्षण--यहां पर संज्व लका लोभ जो हलदीके रंग समान बाकी रहा था उसका क्षय करे एवं २८ प्रकृतिका क्षय करे। यदि पूर्वसे उपशान्त करता हुषा उपशम श्रेणी करके आया हो तो यहांसे इग्यारवें उपशान्तमोह वीतरागी गु० में आवे और ज. एक समय उ० अन्तर मुहूर्त ठहरकर पिछा गिरे तो क्रमशः आठवें गु०पर आके क्रमश: पहले गु० तक भी जा सकता है अगर इग्यारवें गु० पर काल करे तो अनुत्तर वैमानमें उपजे । क्योंकि इग्यारवे गुणस्थानक पर आया हुवा जीव आगे नही जा सकता। यदि तद्भव मोक्ष जानेवाला हो तो आठवे गु० से क्षपक श्रेणि करके दशवें गु० से बारह गु० को प्राप्त करे।
(१०) क्षीणमोह वीतरागी गु० का लक्षण- यहां ज्ञानाधर्णिय, दर्शनावणिय और अन्तराय कर्मका क्षय करके १३