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को श्रद्धा पूर्वक जाणे, सामायिक, पोषध, प्रतिक्रमण, नौकारसो मादि तप करे, आचार विचार स्वच्छ रक्खें लोक विरुद्ध कार्य न करे, अभक्षादि तुच्छ वस्तुका परित्याग करे, और मरके बमानिकमे जावे । इस गुणस्थानकके प्राप्त होनेसे जीव ज०३ उ० १५ भव करके अवश्य मोक्ष जावे ।
(६) प्रमत्त संयत गु० का लक्षण-जीव १५ प्रकृति भय या क्षयोपशम करनेसे इस गु) को प्राप्त करता है जिसमें ११ प्र० पूर्व कही और चार प्रत्याख्यानी चौक । . (१) क्रोध-रेतीपर गाडाकी लकीर समान ।
(२) मान-काष्टके. स्थम्भ समान । (४) माया-चलते हुवे बलदके मूत्रकी धारा समान । (५) लोभ-आंखके अंजन समान ।
यह चोकडी सराग संयमको घातक है। स्थिति इस चार मासकी है। और गती मनुष्यको । इस गु० मे जीव पंच महाव्रत, ५ समिति, ३ गुप्ति, चरणसत्तरी करणसत्तरी आदि मुनि मारग सम्यग प्रकारसे भाराधे और मरके नियमा वैमानिक जावे । इस गु० बाला ज० ३ उ० १५ भव करके अवश्य मोक्ष जावे ।
(७) अपमत्त संयत गु० का लक्षण-मद, विषय कषाय, निद्रा और विकथा इन पाचो प्रमादको छोडके अप्रमत्त पने रहे। इस गुणस्थानवाला जीव तदभव मोक्ष जाय या उ• ३ भव करे।
(८) निवृत्ति बादर गु० लक्षण-अपूर्वकरण शुक्ल शान के प्राप्त होनेसे यह गु० प्राप्त होता है। इस गु. से नीष श्रेणी प्रारंभ करते है. एक उपशम और दूसरी क्षपक । जो पूर्व कही १५ प्रकृतियोको उपशमावे वह उपशम श्रेणि करे और जो