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१५७ शासन पर प्रेम नही और अन्य धर्म पर द्वेष भी नही । शासनके सम्मुख हुवा पर स्वीकार करनेकों असमर्थ है। जीव दूसरे गु. की माफक शुक्ल पक्षी है और नियमा मोक्ष जावेगा।
[४] प्रवृत्ति सम्यगदृष्टि गु०का लक्षण-चतुर्थ गु० प्राप्त करनेवाला जीव प्रथम ७ प्रवृत्तियांका क्षय या उपशम करता है। यथा
(१) अनन्तानुबन्धी क्रोध-पत्थर की रेखाके समान । (२)
मान-घनके स्तम्भसमान । (३)
माया-वांसको जडके समान । (४) , लोभ-किरमजी रेशमके रंग समान
यह चोकडि धात करे तो सम्यक्त्व की, स्थिति करे तो पावत् जीवकी और गती करे तो नरककी। . (५) मिथ्यात्व मोहनी-मिथ्यात्वमें ही मग्न रहै।।
(६) मिश्र मोहनी-यह भी सच्चा और यह भी सच्चा (मिश्रभाव) (७) सम्यक्त्व मोहनी- क्षायक सम्यक्त्व को न आने दे और सम्य० का विराधक भी न होने दे। इन ७ प्रकृतियोंके ९ मांगे होते है। . [१] चार प्रकृति क्षय करे ३ प्र. उपशमावे तो क्षयोपशम सम्यक्त्व। . [२] पांच प्रक्षय करे और २ प्र० उपशमावे तो क्षयोपशम
३] छ प्र० क्षय कर १ प्र. उपशमावे तो क्षयोपशम सम्यक ... [४] चार प्र० क्षय०२ प्र० उपशमावे १ वेदे तो क्षयोपशम वेदक सम्यक्त्व हो।
[५]५ प्र० क्षय०१ प्र० उप० १ वेदे तो वेदक सम्य.