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७-८-९-१० गु० में दो कारण कषाय और योग । ११-१२-१३ गु० में एक कारण, योग । और चौदवें गु. में कारण नहीं ।
(११) भाव द्वार-भाव पांच-औपशमिक भाव, क्षायिकभाव, क्षयोपशमिक भाव, औदयिकभाव, और परिणामिक भाव । १-२-३ गु मे भाव ३ उद० क्षयो० और परि०।४ से ११ गु० तक पाचों भाव । १२ गु० में चार भाव (उपशम वर्जके)। १३-१४ मे ३ भाव क्षयो० वर्जके । . (१२) परिसह द्वार-बावीस परिसह देखो शीघ्रधोध भाग १॥ प्रथमसे नौवे गु० तक २२ परिसह, जिसमें एक समय २० वेदे-शीत, उप्ण और चलना, बैठना इन चारमेसे दो प्रति पक्षी छोडके । १०-११-१२ गु० में १४ परिसह आठ मोहनीका बजे के एक समय १२ वेदे । १३-१४ गु०११ परिसह वेदे वेदनीय कर्मका।
(१३) अमर द्वार-३-१२-१३-गु० में मरे नहि शेष ११ गुल में मरे । वास्ते तीन गु० अमर है।
(१४) पर्याप्ता द्वार-१-२-४ गु० पर्याप्ता, अपर्याप्ता होवे शेष ११ गु० में केवल पर्याप्ता हीवे ।
(१५) आहारीक द्वार-१-२-४-१३ गु० में आहारी, अणाहारी दोनो और नौ गु० में केवल आहारी। और चौदवां गु० केवल अणाहारी।
(१६) संज्ञा द्वार-संज्ञा चार-आहार संज्ञा, भय मैथुन परिग्रह. पहिले गु० से पांचवे गु० तक चारों संज्ञा तथा छट्टे गु० भजना और शेष ९ गुल में नो संज्ञा।
(१७) शरीर द्वार-शरीर ५ औदारिक, वैक्रिय, आहा