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१४६ . (५) कर्मबंध-ज्ञानवर्णीय कर्मके बंधक स्यात् एक जीव मिले स्यात् बहुत जीव मिले एवं आयुष्य कर्म वर्ज के शेष । कर्म कहना और आयुष्य कर्म बंधक के भांगा ८ (१) आयुष्य कर्म का बंधक एक (२ ) अबंधक एक ( ३ ) बंधक बहुत (४ अबंधक बहुत (५) बंधक एक अबंधक एक (६) बंधक एम अबंधक बहुत (७) बंधक बहुत अबंधक एक (८) बंधक बहुत अबंधक भी बहुत इसी माफक जहां पर फीर भी ८ भांगा को उसको भी इसी तरह लगा लेना सात कर्मों के १४ भांगे यथ ज्ञानवर्णी का एक और ज्ञानवर्णीय के बहोत इस तरह एक वचन बहुवचन करने से १४ भांगे हुवे और ८ आयुष्य के एवं २२ भांगे। - (६) कर्मवेदे-ज्ञानावर्णीय कर्म वेदने वाले किसी समय एक. और किसी समय बहुत जीव मिले एवं वेदनीय कर्म छोड के शेष कर्मों के १४ भांगे और वेदनीताता, असाता दो प्रकार को वेदे इसलिये इसके ८ भांगा पूर्ववत् एवं २२ भांगा।
(७) उदय ज्ञानवर्णीय के उदयवाला किसो समय एक जीव मिले और किसी समय बहोत एवं अंतराय यावत् ८ कर्मों के १६ भांगा हुवे।
(८) उदीर्णा वेदनी और आयुष्य कर्म को छोड के शेष मानावर्णीयादि६ कर्मोके एक वचन बहुवचनाश्रीय १२ भांगे और वेदनी आयुष्यके ८-८ भांगे पूर्ववत् समझना एवं २८ मांगे ।
(९) लेश्या-उत्पपल में चार लेश्या कृष्ण, नील, कापोत, और तेजो इन चार लेश्याओं के अस्सी भांगे होते है यथा अ. संयोगी ८ किसी समय कृष्णलेसी एक, किसी समय नील लेसी एक, किसी समय कापोत लेसी एक और किसी समय तेजोलेशी एक यह एक पचनापेक्षा चार भांगा इसी तरह बहुवचन के भी चार भांगा समझ लेना एवं ८ भागा और हिक संयोगो २१