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वि० वचन, विसंयोगी १२
त्रिक संयोगी ८
उ. नि.. उ. नो. नि. नो० उ०नि० नो० उ०नि० नो०
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( १६ ) आहारक- आहारक है भांगा २ पूर्ववत् । ( १७ ) वृत्ति-अवृत्ति है भांगा २ पूर्ववत् । (१८ ) क्रिया-सक्रिय है भांगा २ पूर्ववत् ।
( १९) बन्ध-सातकर्म का बन्धगा, आठ कर्म का बन्धगा जिसका भांगा ८ पूर्ववत् ।
(२० ) संज्ञा-आहारादि चारों संज्ञा पावे जिसके भांगा ८० पूर्ववत् । लेश्या द्वारसे देखो।
( २१ ) कषाय क्रोधादि चारों कषाय पावे भांगा ८० पूर्ववत् ( २२ ) वेद-एक नपुंसक है भांगा दो पूर्ववत् ।
(२३) वेदबन्ध-स्त्री, पुरुष, नपुंसक तीनों वेद के बांधने वाले है भांगा २६ पूर्ववत् । उश्वास द्वारकी माफीक ।
(२४) संज्ञी-असंझी है भांगा दो पूर्ववत् । - (२५) इंद्रिय-सइंन्द्रिय है, भांगा दो पूर्ववत् ।
(२६) अनुबंध याने काय स्थिती-ज. अंतर मु० उ० असंख्याते काल।
(.२७) संवह-उत्पल कमल का जीव अन्य स्थान में जाकर पीछा उत्पल कमल से आवे जैसे पृथ्वी और उत्पल कमल में