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थोकडा नंबर ६५ वां.
( परोक्षज्ञान) (२) परोक्ष ज्ञानके दो भेद है मतिज्ञान, श्रुतिज्ञान, जिस्मे मतिज्ञान मन विचारणा बुद्धिप्रज्ञा मनन करनेसे होता है और श्रुतिज्ञान श्रवण पठन पाठन करनेसे होता है जहां मतिज्ञान है वहां निश्चय श्रुतिज्ञान भी है जहां श्रुतिज्ञान है वहां निश्चय मतिज्ञान भी है कारण मति विगर श्रुति हो नही सकता है और श्रुति विगर मति भी नही होती है सम्यग्दृष्टि की मति निर्मल होनेसे मतिज्ञान कहा जाता है और मिथ्यादृष्टि को विषम मति होनेसे तथा मोहनिय कर्मका प्रबलोदय होनेसे मति अज्ञान कहा जाता है इसी माफीक श्रुतिज्ञान. भी सम्यग्दृष्टियों के तत्व रमणता तत्व विचार में यथार्थ श्रवण पठन पाठन होनेसे श्रुतिज्ञान कहा जाता है और मिथ्यादृष्टियों के मिथ्यात्व पूर्वक मिथ्या श्रद्धना होनेसे श्रुति अज्ञान कहा जाता है सम्यग्दृष्टि के सम प्रवृ. ति समविचार समतत्व होनेसे उसको मति श्रुतिज्ञानवन्त और मिथ्या दृष्टि कि मिथ्या प्रवृति मिथ्या विचार मिथ्या तत्व होने से मति अज्ञान श्रुति अज्ञान कहा जाता है ____ मतिज्ञान के दो भेद है एक श्रवण करने कि अपेक्षा याने अषण करके मतिसे विचार करनेसे. दुसरा अभषण याने बुद्धि वलसे विचार करनेसे मतिज्ञान होता है जिस्मे अश्रवण के च्यार भेद है. (१) उत्पातिका बुद्धि-विगर सुनी विगर देखी बातों या
प्रश्नोंको उत्तर देना. (२) विनयसे बुद्धि-गुरवादिके विनय भक्ति करनेसे
प्राप्त हुइ बुद्धि.