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शय्या, उपधि, भक्त, पान, उद्गमादि (उद्गम, उत्पात ओर एषणा), दोषोकी विशुद्धि, शूद्धाशुद्ध प्रहण. आलोचना, व्रत, नियम: सप और भगवान वीरप्रभुका उज्वल जीवन है। प्रथम श्री आचारांग सूत्रमें दो भुतस्कंध इत्यादि शेष यंत्रमे.
२ मूत्रकृतांग ( सूअगडांग ) सूत्र-स्वसिद्धांत परसिद्धांत, स्वऔरपरसिद्धांत, जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक अलोक, लोकालोक, जीव, अजीव , पुण्य, पाप, भाव, संवर, निर्जरा, पंप और मोक्ष तकके पदार्थो, इतर दर्शनसे मोहित, संदिग्ध नव दीक्षितकी बुद्धिकी शुद्धिके लिये एकसोएंशी क्रियावादिका मत, पौरासी भक्रियावादिका मत, सडसठ अज्ञानवादिका मत, बतीस विनयवादिका मत एकुल मीलकर ३६३ अन्य मतियों के मतको परिक्षेप करके स्वसमय स्थापन व्याख्यान है दुसरा अंगका दो भुतस्कन्ध इत्यादि शेष यंत्रमें.
३ स्थानांग सूत्र-स्वसमयकों, परसमयकों, और उभय समको शासन, जीषकों अजीवकों, जीवाजीवकों, लोककों, अलोकको, लोकालोकको स्थापन, पर्वत, शिखर, कुट, माण, कुड, गुफा, आगर, हें, नदी आदि एकएक बोलसे लगाके दशदश बोलका संग्रह कीया हुवा है. नीस्का श्रुतस्कंध १ इत्यादि शेष यंत्रमें. : ४ समवायांग मूत्रमें-स्वसिद्धांत, परसिद्धांत, उभय सिद्धांत, मीब, अजीव, जीवाजीव, लोक अलोक, लोकालोक और एकादिक कितनाक पदार्थोकों एकोतरिक परिवृद्धिपूर्वक प्रतिपादन अर्थात् प्रथम एक संख्यक पदार्थोको निरुपण पीछे विसंख्यक यावत् क्रमसर ३-४ यावत् कोडाक्रोड पर्यंत अथवा द्वादशांग गणिपिटपापर्यवोकों प्रतिपादन और तिर्थंकरोंके पूर्वभव मातापिता वा दीक्षा, ज्ञान, शिष्य आदि व चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रति पानदेवादिकका व्याख्यान हे जीस्का श्रूतस्कंध १ इत्यादि