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कजाबाकाजाक
तिबंकर भगवानने परपणा करी है और द्वादशांगीमें अनंता भाव, अनंता अभाव, अनंताहेतु, अनंता अहेतु, अनंताकारण, अनंता. सकारण, अनंता जीव, अनंताअजीव, अनंताभवसिद्धिया, अनंता अमव सिद्रिया अनंता सिद्धा, अनंता असिद्धा इत्यादि भाव है,
१. नोट-कालीक उत्कालीक सूत्रोंके सिवाय भगवान् ऋषभप्रभुके ८४००० मुनिओंने ८४००० पईमायावत् वीर प्रभुके १४००० मुनिनोंने १४००० पईन्ना रचे थे अर्थात् जीस तीर्थकरोके जीतने मुनि होते है वह उत्पातिकादि स्वयं बुद्धिमें एकएक पइना बनाता था।
इनके सिवाय कर्मग्रन्थमें श्रुतिज्ञानके १४ भेदोंके सिवाय २० भेद बतलाये है यथा
(१) पर्यायभूत-उत्पत्ति के प्रथम समयमै लब्धि अपर्याप्ता सक्षम निगोदके जावाको जो कुश्रुतका अंश होता है उससे दुसरे समयमै ज्ञानका जीतना अंश बढ़ता है वह पर्याय-श्रुत है।
(२) पर्याय समासश्रुत-उक्त पर्यायश्रुतके समुदायकों अर्थात् दो तीनादि संख्याओकों पर्याय समासश्रुत कहते है।
(३) अक्षरभुत-अकारादि लब्धि अक्षरों से कीसी एक अक्षरको अक्षरभुत कहते है। .
(४) अक्षरसमासश्रुत-लब्ध्यक्षरोंके समुदायकों अर्थात् दो तीनादि अक्षरोको अक्षरसमासश्रुत कहते है।
(५) पदश्रुत-जिस अक्षर समुदायसे पुरा अर्थ मालुम हो वह पद और उसके ज्ञानकों पदश्रुत कहते है।
(६) पदसमासश्रुत-पदोंके समुदायके ज्ञानको पदसमासश्रुत
(७) संघातश्रुत-गति आदि चौदा मार्गणाओंमेसे किसी पक मार्गणाके एक देशके ज्ञानको संघातश्रुत कहते है।
: (८) संघातसमासश्रुत - किसी एक मार्गणाके अनेक देशांका शानको संघातसमासश्रुत कहते है जैसे गति मार्गणाके च्यार अब नरकगति, तीर्थचगति मनुष्यगति देवगति जिसमें एक अवयवका ज्ञान होना उसे संघातसमासश्रुत कहते है।