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१०२ थोकड़ा नं. ६०.
श्री भगवती सूत्र श० २५-उ० ४.
(जीव कंपाकंप.) हे भगवान् ! समुचय जीव क्या कंपायमान है या अकंप है ( गौतम ) जीव दो प्रकार के है । एक सिद्धोंके और दूसरे संसारी जिसमें सिद्धों के जीप दो प्रकार के है, एक अणंतर ( जो एक समय का ) सिद्धा और दूसरा परंपर (बहुत समय का) सिद्धा मो परम्पर सिद्ध है वे अकंप है और अणंतर सिद्ध । धे कंपायमान है अगर कंपायमान है तो कया देश ( एक हिस्सा) कंपायभान है या सर्व कंपायमान है ? देश कंपायमान नहीं है किन्तु सर्व कंपायमान है क्योंकि मोक्ष जाता हुआ जीव रस्ते में सर्व प्रदेशों से चलता है। "संसारी जीव दो प्रकार के है एक शलेस प्रतिपन्न । चौदवे गुणस्थानवर्ती) और दूसरा अशैलेस (पहिले से तेरवें गुण स्थान तक के ) जिस में शैलेस प्रतिपन्न है वह अकंप है, और अशलेस है बह कंपायमान है ? अगर कंपायमान है तो क्या देश कंपायमान है या सर्व कंपायमान है, देश कंपायमान भी ।
और सर्व कंपायमान भी है। जैसे हाथ हिलाना यह देश कंपायः मान या आत्म सर्व प्रदेशों से गती आगती करता है सो सर्व है।
नारकी के नेरीयों की पृच्छा ? ( गौतम ) देशकम्प भी। और सर्व कम्पी भी है कारण नारकी दो प्रकार के है, एक परभव गमन गतीवाले, और दूसरे वर्तमान भवस्थित देशकंप है, इसी माफिक भुवनपति १०, स्थावर, ५ विकलेन्द्री, तीन १ मनुष्य, ग्यंतर. १ जोतिषी और वैमानिक भी समझ लेना । इति ।
सेवंभंते सेवंभंते तमेव सच्चम् ।