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थोकडा नं०६५
श्री भगवती सूत्र श० ८ उ०-१
(पुद्गल). सर्व लोक में पुद्गल तीन प्रकार के है. प्रयागशा, मिश्रशा और विशेशा। दोहा-जीष गृह्या ते प्रयोगशा मिशा जीवा रहित ।
विशेषा हाथ आवे नहीं ज्ञानी भाष्या ते तहत् ।। प्रयोगशा-जीव ने जो पुद्गल शरीरादिपने गृहण किया वह । मिश्रशा-जीव शरीरादि पने गृहण करके छोडे हुवे पुद्गल । विशेषा-शीतोष्णादि पने जो स्वभाव से प्रणम्या पुद्गल । ___ अब इन पुदगलों का शास्त्रकारोने अलम २ भेद करके बतलाया है, प्रयोगशा पु. का नव दंडक कहते है जिसमें पहिले दंडक में नीष के ८१ भेद है, यथा सात नारकी, रत्नप्रभा, शर्कराप्रमा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा तमप्रभा, तमस्तमःप्रभा.१० भुवनपति-असुरकुमार, नागकु. सुवर्णकु. विद्युतकु. अग्निकु०बीपकु. दिशाकु० उदधिकु० वायुकु० स्तनित्कुमार. ८ व्यंतर-पिशाच, मृत, जक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व. ५ ज्योतिषीचन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा. १२ देवलोक सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, महेन्द्र, ब्रह्मा, लांतक, महाशुक्र, सहस्रार, आणत, प्राणत्, आरण, अच्युत. ग्रेवेक-भद्र, सुभद्र, सुजया, सुमाणसा, पुरर्शना, प्रियदर्शना, अमोय, सुपडिबन्धा, यशोधरा. ५ अनुत्तर मान-विजय, विजयंत, जयंत, अपराजित, सर्वार्थसिद्ध. ५ साम-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, घाउकाय, घनस्पतिकाय