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११८ एवं ५ बादरकाय-पृथ्वीकायादि. ३ विकलेन्द्री बेरिद्री, तेरिद्री, पौरिन्द्री, ५ असन्नीतियच. जलचर, स्थलघर, खेचर, उरपरी भुजपरी, एवं ५ सन्त्री निर्यच जलचरादि० दो मनुष्य-गर्भज और समुत्सम यह पहिले, दंडके ८१ भेद हुवे।
(२) दूसरा दंडकमे जीवोंके पर्याप्ता-अपर्याप्ता के १६१ घोल है जेसे जीवोंके ८१ भेद कहा है जिस्के अपर्याप्ता के ८५
और पर्याप्ता के ८० क्योंकि समुत्सम मनुष्य पर्याप्ता नहीं होते एवं ८१-८० मिलके १६१ भेद दूसरे दंडकका १६१ बोल हुवा,
(३) तीसरे दंडकमें पर्याप्ता अपर्याप्ता के शरीर ४९१ ॥ यथा दूसरे दंडक में जो १६१ बोल कहे हैं जिसमें तीन तीन शरीर सब में पावे कारण नारकी देवता में वैक्रिय, तेजस, कार्मण शरीर है और मनुष्य तिर्यंच में औदारिक, तेजस, कर्मिण है इसलिये १६१ को तीन गुणा करने से ४८३ भेद हुवे तथा वायुकाय और सन्ना तिर्यंच में शरीर पावे चार जिसमें तीन २ पहिले गणचुके शेष ६ बोलों के ६ शरीर और मनुष्य में ५ शरीर है जिसमें। पहिले गण चुके शेष २ मनुष्य के और ६ बायु तिथंच के एवं मिलाने से ४९१ भेद तीजे दंडक का हुवा।
(४) चौथे दंडक में जीवों की इन्द्रियों के ७१३ भेटी यथा दुसरे दंडक में १६१ भेद कह आये हैं जिसमें एकेन्द्रिय २० बोलों में २० इन्द्री विकलेन्द्री के ६ बोलों कि ६८ इन्द्री शेष १३५ बोलों में पांच २ इन्द्री गणनेसे ६७५ इन्द्रियां एवं २०१८-६७५ सब मिलके ७१३ भेद हुवे ।
(५) पांचवे दंडक में शरीर की इन्द्रियों के २१७२, भेद है। यथा-तीसरे दंडक के ४९१ भेद कर आये है जिसमें एकेन्द्रीय के ६१ शरीर में इन्द्रीय ६९ है और विकलेंद्री के १८ शरीर इन्द्रीय ५४ हैं शेष ४१२ शरीर पंचेन्द्रीयके हैं, जिसमें २०६०