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अलियाणबंध के ४ भेद - लेसाण बंध, उच्चयबन्ध, समु arबंध, और साधारणबंध, जिसमें लेसाणबंध जैसे कादेते, चूमेसे, लाखसे, मेणसे, पत्थर तथा काष्टादि को जोडकर घर प्रासाद आदि बनाना इसकी स्थिती अ० अंतर मुहूर्त उ० से. water काल (२) उच्चयबन्ध - जैसे--तृणरासी, काष्टशती, पत्र रासी तुस, भुल० गोबर रासी का ढेर करने से बंध होता है उसकी स्थिती ज० अंतर मुहुर्त उ० संख्याता काल - ( ३ ) समुच्चयबन्ध- जैसे- तालाब, कूषा, नदी, ग्रह, बावडी, पुष्कर्णी, देवकुल, सभा, पर्वत, छत्री, गढ, कोट, किला, घर, रस्ता, चौरस्तादि जिनकी स्थिती ज० अंतर मुहुर्त उ० संख्याताकाबकी है. ( ४ ) साधारणबन्ध - जिसके दो भेद - देसबन्ध जैसेगाडा, गाडली, पीलाण, अम्बाडी, पिलंग, खुरसी, आदि और दूसरा सर्वबन्ध जैसे पाणी दूध इत्यादि इनका स्थिती ज० अंतर मुहुर्त उ० संख्याताकाल ।
शरीरबन्ध के दो भेद-पूर्व प्रयोगापेक्षा और वर्तमान प्रयोगा पेक्षा जिस में पूर्व प्रयोग जैसे नरकादि सर्व संसारी जीवों के जैसा २ कारण हो वैसा २ बंध होता है. और वर्तमान प्रयोग बंध जैसे केवली समुद्घात से निवृत्त होता हुवा अन्तरा और मथन में प्रवृत्तमान तेजस और कारमण का बन्धक होवे, कारण उस वक्त केवल प्रदेशही होते हैं ।
शरीर प्रयोग बन्धके ५ भेद जैसे औदारिक शरीर प्रयोग is, efore आहारक० तेजस० और कारमण शरीर प्रयोगबंध इनकी स्थिती सविस्तार आगे के थोंकडे में कहेंगे
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सेवंभंते सेवते तमेव सच्चम् ।