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किय शरीर सर्वबन्ध देशम्बध का आन्तर अन्तर मुहुर्त उ० अनंताकाल वनस्पतिकाल )।
(अल्पा बहुत्व ). (१) सबसे स्तोक वैफ्रिय शरीर के सर्वबंध के जीवों। (२) वैक्रिय शरीर देशबंध वाले जीवों असं गुणे। (३) , , अबंध वाले जीवों अनन्त गुणे ।
(३) आहारिक शरीर बांधने के ८ कारण औदारिकवत् नौवां धि जिसका स्वामी मनुष्य यह भी ऋद्धिवन्त मुनिराज है आहरिक शरीर के सर्वबंध की स्थिती ज० उ० एक समय और देशव की स्थिती ज० उ० अन्तर मुहुर्त अन्तर सर्व बंध देशबंध प्रज० अन्तर मुहुर्त उ० अनन्तकाल यावत् अईपुदल परावर्त । (१) सबसे स्तोक आहारक शरीर के जीवों सर्वबन्ध । (२) आहारक शरीर के देश बन्धके जीवों संख्यात गुणे । १३) , , अबन्धक जीवों अनन्त गुणे ।
(४) तेजस शरीर बंध का स्वामी पकेन्द्रीयसे यावत् पंखेन्द्री है और आठ कारण से बंध होता है औदारिकवत् तेजस घरीर सर्व बंध नहीं होता केवल देशबंध होता है जिसके दो मेद अनादी अनन्त । अभव्यापेक्षा ) और अनादि सान्त ( भव्यापेक्षा ) इन दोनों का अन्तर नहीं है निरन्तर बंध होता है
(१) तेजस शरीर का अवन्धक स्तोक । .(२) और देश बंधक जीवों अनन्त गुणा ।
(५) कार्मण प्रयोग बंध के आठ भेद-यथा ज्ञानावर्णीय एशना०, वेदनी, मोहनी०, आयुष्य०, नाम०, गोत्र०, अंतरायः
आठ कमों के बंधका ७९ कारण शीघ्रबोध० भाग २ में लिखा करमाणका देशबंध है सर्वबंध नहीं होते है स्थिती तथा अन्तर सैबस शरीर के माफिक समझ लेना अल्पाबहुत्व आयुष्य कर्म