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से चौतर्फ जम्बूद्वीप के ४ दरवाजे, पैतालीस २ हजार योजन दुर है उस मेरु पर्वत की चूलका पर पूर्वोक्त सुद्धि वाले छे देवते खडे है उस बक्त चार देवीयां जम्बूद्वीप के चारों दरवाजे पर लवणसमुद्र की तर्फ मुंह करके हाथ में एक २ मोदक काला लिये खडी है बे दरवाजे समधरती से ८ योजन ऊंचे है वहां से उन लड्डूओं को वे देवीयां समकाल छोडे और देवीयों के हाथ से लड्डूछूटते ही मेरूपरसे छेओं देवताओं से एक देवता वहांसे निकले और ऐसा शीघ्र गति से चले कि उन चारों लड्डूषों को अधर हाथ में लेले याने जमीन पर न गिरने दे, ऐसी शीघ्र गती वाले वे छेओं देवता लोकका नापा ( अन्त) लेनेको जावे, और उसी समय किसी साहूकार के एक हजार वर्षकी आयुष्य वाला पुत्र जनमा, गौतम स्वामी प्रश्न करते है कि है भगवान् ! उस पुत्र के माता पिता काल धर्म प्राप्त हो गये इतने काल में वे छेओं देवताओ छओ दिशी का अंत लेके आवे ? गौ० नहीं तो क्या वह लडका सम्पूर्ण आयुष्य पूर्ण करे तब वे देवता लोकका अंत लेकर आवे ? गौ० नहीं तो उसके हाड, नाम गोत्र विच्छेद हो जाय इतना काल वितीत होने से वे देवता लोक का अन्त लेके आवे ? गौ० नहीं।
हे भगवान् ! ऐसी शीघ्र गती वाले देवता भी इतने काल तक चले तो क्या गतक्षेत्र जादा है या शेष रहा क्षेत्र जादा है ? गौ० गत क्षेत्र जादा है और शेष रहा क्षेत्र कम है शेष रहे हुधे क्षेत्र से गतक्षेत्र असंख्यात गुणे है और गत क्षेत्र से शेष रहा क्षेत्र असंख्यात में भाग है। इतना बड लोक है। ___ अलोक की पृच्छा ! लोक के माफीक कहना विशेष इतना है कि समयक्षेत्र ४५ लक्ष योजन का है जिसकी मर्यादा के लिये चौतर्फ मनुष्योत्तर पर्वत् है और मध्य भाग में मेरुपर्वत् है ॥ उसपर दश देवता महऋद्धिक बैठे है और आठ देवी मनुष्योत्तर