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.. धर्मास्तिकाय के विशेषाबंध की स्थिति कितनी है ? गौतम! सर्षादा याने सदाकाल सास्वता बंध है एवं अधर्मास्ति० आकाशास्ति० भी समझ लेना।
सादी विशेषा बन्ध कितने प्रकारका ? गौ० तीन प्रकारका बन्धनापेक्षा, भाजनापेक्षा और परिणामापेक्षा जिसमे बंधामापेक्षा जैसे दो प्रदेशी, तीन, चार यावत् अनंत प्रदेशी का आपस में बंध हो। परन्तु ऋक्षसे ऋक्ष न बंधे स्निग्ध से स्निग्ध न बग्वे परन्तु ऋक्ष और स्निग्ध संबंध होवे वह भी जघन्य गुण धर्जके
से पक गुण ऋक्ष और एक गुण स्निग्ध का बंध न होघे परंतु विषम मात्रा जैसे एक गुण ऋक्ष और दो गुण स्निग्ध का बंध होथे इसी तरह यावत् अनंत प्रदेशी तक समझ लेना, इनकी स्थिती न० एक समय की उ० असंख्याताकाल। __भाजनापेक्षा-जैसे किसी भाजन में जूना गुल तथा तंदूल मदरादि गालने से उनका स्वभाव से बन्ध हो, उनकी स्थिती ज. एक समय उ० संख्याः कालकी है।। . परिमाण बन्ध-जैसे बादल, इन्द्रधनुष, अमोघा, उद्रमच्छादि इनकी स्थिती ज. एक समय उ० छे मासकी है। . __प्रयोग बन्ध के तीन भेद-अनादि अनन्त, अनादि सांत । और सादि सांता जिसमें ( १ ) अनादि अनंत-जीव के आठ रुचक प्रदेशोंका बन्ध वह भी तीन २ प्रदेशके साथ है, और शेष आत्म प्रदेश हैं वे सादि सांत है, (२ सादी अनंत एक सिद्धों के आत्म प्रदेश स्थित हुवे है वह सादी है परन्तु अन्त नहीं, (३) सादि सांतके ४ भेद है-आलाषणबन्ध, अलियाषणबन्ध, शरीरबन्ध, और शरीर प्रयोगवैध ।
आलावणबन्ध-जैसे तृणके मारेका बन्ध, काष्ट के मारेका पन्ध, एवं पत्र, पलाल, वेली आदि का बन्ध इनकी ज० स्थिती एक समय उ० संख्याता कालः ।