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थोकड़ा नं० ६७.
श्री भगवती सूत्र श० ८-उ० ९.
( सर्वबंध देशवंध.) शरीर पांच प्रकारके हैं-औदारिक, वैक्रिय, आहारिक, तेजस, और कार्मण शरीर (१ ) औदारिक शरीर आठ बोल से निपजावे-द्रव्य से, वीर्य से, संयोग से, प्रमाद से, भवसे जोगसे कर्मसे आयुष्य से औदारिक शरीर का स्वामी कौन है?..१) समुषय जीव ( २ ) समुचय एवेन्द्री ( ३ ) पृथ्वीकाय ( ४ ) अप (५)
उ० (६) बाउ० (७) वनस्पति०१८ ) बेरेन्द्री ( ९ तेरिन्द्री (१०) चौरिन्द्री ( ११) तिर्यंच पंचेंद्र।। १२) मनुष्य इन बारह बोलों में सर्व बन्धका आहार ले यह ज. एक समय का है सर्व बन्धका आहार जीव जिस योनी में उत्पन्न हो उस योनी में जाके प्रथम समय ग्रहण करता है और वह प्रथम समय का लिया हुवा आहार उमर भर रहता है, जैसे तेलके अंदर बड़ा का दृष्टांत.
देश बंधका आहार-समुचय जीव, समुचय एकेन्द्रिय, वायुकाय तियेचपंचेन्द्री, और मनुष्य इन पांच बोलों के जीवों का देश बंध के आहार की स्थिति ज. एक समय की भी है कारण ये जीव औदारक शरीर से बैकिय करते हैं और बैंकि. पेसे पीछा औदारिक करते हुये प्रथम समय ही काल करे तो औदारिक के देश बंध का एक समय जघन्य बंधक हुआ. शेष सात बोलों ( ४ स्थावर, ३ विकलेन्द्री) के जीव देश बंध म०. क्षुलक भव से तीन समय भ्यन कारण दो समय की विग्रह गती और एक समय सर्व बंध का एवं ३ समय भ्यन