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थोकडा नं० ८७
[श्री भगवती सूत्र श० २५-३० ३.] ( श्रेणी )
आकाश प्रदेशकी पंक्तिको श्रेणी कहते है । गौतमस्वामी anaraसे प्रश्न करते है कि हे भगवान्! समुचय आकाश प्रदे शकी द्रव्यापेक्षा श्रेणी क्या संख्याती, असंख्याती, या अनन्ती है ? गौतम ! संख्याती, असंख्याती नहीं किन्तु अनन्ती है। इसी तरह पूर्वादि छे दिशीकी भी कह देना । एवं समुचयवत् ratararaat भी श्रेणी समझना ( अनन्ती है ) ।
व्यापेक्षा लोकाकाशके श्रेणीकी पृच्छा ? गौतम । संख्याती नहीं, अनम्ती नहीं किन्तु असंख्याती है । इसी तरह छे दिशी भी समझना ।
प्रदेशापेक्षा समुचय आकाश प्रदेशके श्रेणीकी पृच्छा ! गौतम ! संख्याती असंख्याती नहीं किन्तु अनन्ती है, पवं पूर्वादि से दिशीकी भी कहना ।
प्रदेशापेक्षा लोकाकाशके श्रेणीकी पृच्छा ? गौतम ! स्यात् संख्याती, स्यात् असंख्याती है परंतु अनन्ती नहीं, एवं पूर्वाहि चार दिशी कहना, परंतु उंची नीची केवल असंख्याती है।
प्रदेशापेक्षा आलोकाकाश के श्रेणीकी पृच्छा ! गौतम, स्यात् संख्याती, असंख्याती अनन्ती है । परंतु पूर्वादि चार दिशीमें frent अनन्ती है, उंची नीचीमें तीनों बोल पावे ।#
* लोकालोकमें स्यात् संख्याती श्रेणी कहनेका कारण यह है कि लोकके न्त लोक और लोकका खूणा है वहांपर संख्यात्ता आकाश प्रदेश लोकालोककी अपेक्षा है इसी वास्ते संख्याती श्रेणी कही ।