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(९) प्रतिपातिश्रुत-गति इन्द्रिय आदि कीसी द्वारसे संता. रके नीषोंका ज्ञान होना उसे प्रतिपातिश्रुत कहते है।
(१०) प्रतिपातिसमासश्रुति-गति इन्द्रिय आदि बहुतसे बारोसे संसारी जीवोंका ज्ञान होना।
(११) अनुयोगश्रुत-"संतपय परुपणा दख्य पमाणं च" इस पदमें कहा हुवा अनुयोगद्वारोमेंसे कीसी एक के द्वारा जीवादि पदार्थोको जानना अनुयोगश्रुत है
(१२। अनुयोगसमासश्रुत-एकसे अधिक दो तीन अनुयोगहारा जीवादि पदार्थोंकों जानना उसे अनुयोगसमासश्रुत कहते है।
(१३) प्राभृत-प्राभृतश्रुत-दृष्टिवादके अन्दर प्राभत-प्राभूत नामका अधिकार है उनोंसे कीसी एकका ज्ञान होना।
(१४) प्राभृत प्राभूत समासश्रुत -दो तीन च्यारादि प्राभूत प्राभूतोंसे ज्ञान होना उसे प्रा० प्रा० समास कहते है।।
प्राभृतश्रुत-जैसे एक अध्ययनके अनेक उद्दसा होते है इसी माफीक प्राभूत प्राभुतके विभागरूप प्राभूत है जिस एकसे ज्ञान होना उसे प्राभूत ज्ञान कहते है
(१६) प्राभूतसमासश्रुत-उक्त दो तीन च्यारादिसे ज्ञान होना उसे प्राभृतसमासश्रुत कहते है। ___ (१७) वस्तुश्रुत-केह प्राभृतके अवयवरूप वस्तु होते है जिनसे पक वस्तुसे ज्ञान होना उसे वस्तुश्रुत
(१८) वस्तुसमासश्रुत-उक्त दो तीन च्यारादि वस्तुबोंसे मान होना उसे वस्तुसमास कहते है।।
(१९) पूर्वश्रुत-अनेक वस्तुवोंसे एक पूर्व होते है उन एक पूर्वका ज्ञान होना उसे पूर्वज्ञाम कहते है ।
(२०) पूर्वसमासश्रुत-दो तीन पूर्व-वस्तुवोंसे ज्ञान होना उसे पूर्वसमास ज्ञान कहा जाता है। . इसके सिवाय श्रुतज्ञानवाला उपयोग संयुक्त सर्वार्थसिड वैमान तककी बातको प्रत्यक्षसे जान सकता है।