________________
एवं सनत्कुमार महीन्द्रदेव परन्तु अधोलोकमें दूसरी नरक जाने. पैर ब्रह्म और लांतकदेव परन्तु अधोलोकमें तीसरी नरक जाने. एवं महाशुक सहस्रदेष परन्तु अधोलोकमे चोथी नरक जाने. एवं आणत प्राणत अरण्य अचूतदेव परन्तु अधोलोक पांचमी नरक माने. पयं नौग्रीवेगके देष परन्तु अधोलाकमें छटी नरक जाने. पंर्ष च्यारानुत्तर वैभान परन्तु अधोलोकमें सातमी नरक जाने और सर्वार्थ सिद्ध पैमानके देव, लोकभिन्न याने सर्व प्रसनालिको माने वह वात ख्यालमे रखना कि सब देव उर्व तो अपने अपने पैमानके ध्वजा पताका और तीर्यगलोकमे असंख्याते विप समुद्र देखता है। तीयेच पांचेन्द्रिय जं. आंगुलके असंख्यातमे भाग. उ० असंख्याते द्विप समुद्र जाने.। मनुष्य ज० आंगु० असं० भाग उ० सर्व लोक जाने देखे और लोक जैसे असंख्यात खंड अलोकमें भी जान सक्ते है। परन्तु वहां रूपी पदार्थ न होनेसे मात्र विषय ही मानी जाती है.
(३) संस्थान-अवधिज्ञानद्वार जिस क्षेत्रकों जानते है वह कीस भाकारसे देखते यह कहते है.नारकितीपायाके संस्थान.भुवनपति पालाके संस्थान, व्यन्तर देव ढोलके संस्थान. ज्योतिषी झालरके संस्थान. बारह देवलोकके देव उर्व मर्दैग के संस्थान, नौग्रीवेग पुष्पोंकि चंगेरोके आकार, पांचानुत्तर मानके देव, कुंमारिकाके कंचुके संस्थान मनुष्य और तीर्यच अनेक संस्थानसे जानते है।
(४) नारकी देवताओमें अवधिज्ञान है उसे अभ्यान्तर ज्ञान कहते है कारण वह परभवसे आते है तब ज्ञान साथमे ले के आते हैं। तीर्थचकों बाह्य ज्ञान. अर्थात् वह उत्पन्न होने के बाद भोपशम भाषसे ज्ञान होता है। मनुष्यमें दोनो प्रकारसे ज्ञान होता है अभ्यान्तर ज्ञान और बाह्यज्ञान ।।
१५) नारकि देवता और तीर्यच पांचेन्द्रियके ज्ञान है वह देशसे होता है (मर्यादा संयुक्त ) और मनुष्य के देश और सर्व दोनो प्रकारसे होता है।