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में आते है। यावत् ग्रहण करके १२ बोल निपजावे औदारीक शरीर, आहारीक शरीर बर्ड के इसी माफक १३ दंडक देवताओं का भो समझ लेना और पृथ्वीकाय अजीव द्रव्य को प्रहण करके
बोल निपजावे । ३ शरीर, १ स्पर्शेन्द्री, १ काय योग, १ श्वासो. श्वास । इसी तरह अपकाय तेउकाय और वनस्पतिकाय भी समझ लेना तथा वायुकाय में ७ बोल कहना याने वैक्रिय शरीर अधिक कहना और बेइन्त्री में ८ बोल शरीर इन्द्री २ योग १ और श्वासोश्वास । तेरिन्द्री में ९ षोल । इन्धी एक वषी बाणेन्द्री पर्व ९चोरिन्द्रीमे १० । इन्द्री एकबधी चक्षु । तियेच चन्त्री में १३ बोल शरीर ४ इन्द्री ५ योग ३ और श्वासोश्वास व १५ और मनुष्य में सम्पूर्ण १४ बोल उत्पन्न करे । इति। .
सेभंते सेवंभंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नं०८१
(श्री भगवती सूत्र श० २५-उ०-२.)
(स्थिनास्थित ). हे भगवान् ! जीव औदारिक शरीरपणे जो पुद्गल प्रहण करते हैं वे क्या "ठिया" स्थित-याने अकम्प पुद्गल ग्रहण करें गा" अछिया" कम्पायमान पुद्गल ग्रहण करे! गौतम ! अकंप पुल भी ले और कंपायमान पुद्गल भी ले. यदि स्थित पुद्गल ले सोया द्रव्य से ले, क्षेत्र से ले, काल से ले या भावसे ले ! अगर अन्य से ले तो अनन्त प्रदेशी. क्षेत्र से असंख्यात प्रदेश अवगाथा, पास से एक समय दो तीन यावत् असंख्यात समय की स्थिती