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था मिथ्यासूत्र दोनों मिथ्याश्रुति ज्ञानपणे प्रणमते है कारण उसकी मति मिथ्यात्वसे भ्रमित है वास्ते सम्यगसूत्र भी मिथ्यात्व पणे प्रणमते है जैसे जमालि आदि निन्हवोंके वीतरागों कि वाणी मिथ्यारूप हो गई थी और भगवान् गौतम स्वामिके च्यार वेद अठारे पुराण भी सम्यकपणे प्रणमिये थे कारण वह उनके भावों को यथार्थपणे समज गये थे इत्यादि. • (७) सादि (८) सान्त (९) अनादि (१०) अनान्त= अतिज्ञान विरहकालापेक्षा भरतादि क्षेत्रमें सादि सान्त है और अविरह कालापेक्षा महाविदेह क्षेत्रमें अनादि अनान्त है जिस्के संक्षिप्त से च्यार भेद है यथा द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाष । जिस्मे द्रव्यापेक्षा एक पुरुषापेक्षा श्रुतिज्ञान सादि सान्त है और बहुत पुरुषापेक्षा अनादि अनान्त है क्षेत्रापेक्षा पांच भरत पांच एरव. रतापेक्षा सादि सान्त है महा विदेहापेक्षा अनादि अनान्त है। कालापेक्षा उत्सपिणि अवसर्पिणि अपेक्षा सादि सान्त है और तोपिणिनोउत्सपिणि अपेक्षा अनादि अनान्त है। भावापेक्षा मिन प्रणित भाव द्वादशांगी सामान्यविशेष उपदेश निर्देश परूपणा है वह तो सादि सान्त है और क्षोपशम भावसे जो श्रुति. काम प्राप्त होता है वह अनादि अनान्त है तथा भव्यसिद्धी जीवों कि अपेक्षा सादि सान्त है और अभव्य जीवों कि अपेक्षा अनादि अनान्त है। · श्रुतिज्ञान के अभिमाग पलिच्छेद (पर्याय । अनंत है जैसे किं एक अक्षर कि पर्याय कीतनी है कि सर्व आकाशप्रदेश तथा धर्मास्तिकायादि कि अगुरु लघुपर्याय जीतनी है । सूक्ष्म निगोद के.जीवों से यावत् स्थुल जीवों के आत्मप्रदेश में अक्षर के अनम्तमें भाग श्रुतिज्ञान सदैव निर्मल रहता है अगर उसपर कर्मदल
बाजाये तो जीयका अजीव हो जावे परन्तु एसा न तो भूत काल .. मेंहुचा न भविष्य कालमें होगा इस वास्ते ही सिद्धान्त कारोंने