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कारण मतिज्ञान है सो देशज्ञान है मनन करनेसे सामान्य प्रकारसे सर्व द्रव्यादिको जान सके परन्तु अपासणीया उपयोग होनेसे देख नही सके इति ।
सेवभंते सेवभते तमेवसच्चम्
थोकडा नम्बर ६६
(परोक्ष श्रुतिज्ञान) श्रुतिज्ञान-सामान्यापेक्षा पठन पाठन अधण करनेसे होते या अक्षरादि है वह भी श्रुतिज्ञान है श्रुतिज्ञानके १४ भेद है । (१) अक्षर श्रुतिज्ञान जिस्का तीन भेद है (१) आकारादि
किती स्थानापयोगसंयुक्त उच्चारण करना (२) ह्रस्व पातमनुरातादि शुद्ध उचारण (३) लब्धिअक्षर इन्द्रिपजानित जैसे अनेक जातिके शब्द श्रवण कर उससे भिन्न भिन्न शब्दोंपर ज्ञान करना. एवं अनेक रूप गन्ध रस स्पर्श तथा मोहन्द्रिय-मन से पदार्थ को जानना. इसे अक्षरश्रुति ज्ञान करते है।
(२) अनाक्षर अतिज्ञान कीसी प्रकार के चन्ह-चेष्टा करनेसे ज्ञान होता है जैसे मुंह मचकोडना नेत्रों से स्नेह या कोप
र्शना, सिर-हीलाना, अंगुली से तरजना करना, हाँसी खांसी डीक उवासी उकार अनेक प्रकार के वाजिंत्रादि यह सब अनाभस्मृतिज्ञान है। + :(३) संज्ञी श्रुतिज्ञान, संज्ञी पांचेन्द्रिय मनवाले जीवों को
हैनिक तान भेद है (१) दीर्घकाल-स्वमस परमत्त के
RAMMAR