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है फीर विचार किया कि मुझे कोन पुकारता है उसे 'ईहामति झान' कहते है बाद में निश्चय कियाकि अमुक मनुष्य मुझे पुकारता है उसे ' आपायमतिज्ञान' कहते है उस पुकारकोस्वल्प या चीरकाल स्मरणमें रखना उसे 'धारणामति ज्ञान' कहते है जेसे वह अव्यक्त पणे शब्द श्रवण कर च्यारों भेदोंसे निश्चय किग. इसी माफीक अव्यक्तपणे रूख देखनेसे गन्ध सुँघनेसे स्वाद लेनेसे स्पर्श करनेसे और स्वप्न देखनेसे भी समझना ! दुसरा दृष्टान्त कीतने पुद्गल कानों में जानेसे मनुष्य पुद्गलोकों जान सकते है। जैसे कोई मनुष्य कुंभारके वहांसे एक नया पासलीया ( मट्टीका वरतन लाके उसमे एकेक जलबिन्दु प्रक्षेप करे तब वह पासलीया पुरण तोरसे परिपूर्ण भरजावे तब उस पासलीयोंसे जलबिन्दु बाहार गीरना शरू हो, इसी माफीक बोलनेवालेके भाषावारा निकले हुवे पुद्गल श्रवण करनेवालेके कानोमें भरते भराते श्रोत्रे न्द्रिय विषय पूर्ण पुद्गल आजावे तब उसे मालुम होती है कि मुझे कोइ पुकारता है इसी माफीक पाँचो इन्द्रिय-स्व-स्व विषय के पूर्ण पुद्गल ग्रहन करनेसे अपनी अपनी विषयका ज्ञान होता है इसी माफीक स्वप्नेके भी समज लेना.
मतिज्ञानके संक्षिप्त च्यार भेद है द्रव्य क्षेत्र काल भाष ।
( १ ) द्रव्यसे मतिज्ञान-संक्षिप्त सर्व द्रव्य जाने किन्तु देखे नहीं.
( २ ) क्षेत्रसे मतिज्ञान - संक्षिप्तसे सर्व क्षेत्र जाने पण देखे नहीं.
(३) कालसे मतिज्ञान-संक्षिप्तसे सर्व काल जाने परन्तु देखे नहीं.
(५) भाषसे मतिज्ञान-संक्षिप्तसे सर्व भाव माने परंतु देखे नहि।