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(४) रसेन्द्रिय अर्थग्रहन-स्वादन करनेसे उस्के अर्थ को ग्रहन करना,
(५) स्पर्शेन्द्रिय अर्थ ग्रहन-स्पर्श करनेसे उस्के अर्थको ग्रहन करना.
(६) मन अर्थ ग्रहन--मन पणे पुद्गल प्रणमनेसे उस्के अर्थको ग्रहन करना.
इन छहो अर्थ ग्रहनका मतलब तो एक ही है परन्तु नाम उच्चारण भिन्न भिन्न है जिस्के पांच भेद है-अर्यको ग्रहन करना अर्थको स्थिर करना. अथको सावधानपणे संभालना. अर्थके अ. न्दर विचार करना. और अर्थका निश्चय करना। इसी माफीक ईंहा नामके मतिज्ञानका भी श्रोतादि छे भेद है परन्तु पांच नाम इस माफोक है विचारमे प्रवेश करे. बिचार करे, अर्थ गवेषना करे. अर्थ चिंतवण करे. भिन्न भिन्न अर्थमें विमासण करे । इसी माफीक आपाय. मतिज्ञान के भी श्रोतादि छे भेद है परन्तु पांच नाम इस माफीक है अर्थका निश्चय करे. चितवनका निश्चय करे. विशेष निश्चय करे. बुद्धि पूर्वक निश्चय करे. विज्ञान पूर्वक निश्चय करे. इसी माफीक धारणा मतिज्ञान के भी श्रोतादि छे भेद है परन्तु पांच नाम इस प्रकार है निश्चत किये हुवे अर्थ को धारण करना. चीरकाल स्मृतिमे रखना. हृदय कमलमें धारण करना. विशेष विस्तारपूर्वक धारण करना, जैसे कोठारमें रखा हुवा अनाज कि माफीक जाबते के साथ धारण कर रखना. यह सब मतिज्ञान के विशेष भेद है उगृह मतिज्ञान कि स्थिति एक समयकी है ईहा ओर अपाय कि स्थिति अन्तरमुहूर्त कि है और धारण कि स्थिति संख्यातकाल ( मनुष्यापेक्षा ) असंख्याते काल (देवापेक्षा ) की है एवं अश्रवणापेक्षा ४ ओर श्रवणापेक्षा २४ मीलाके मतिज्ञान के २८ भेद होते है.
तथा कर्मग्रन्थमें इन अठावीस प्रकारके मतिज्ञानकों बारह