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: (३) कर्मसे बुद्धि-जसे जसे कार्य करे वैसी बुद्धि प्राप्त हो (४) पारिणामिका-जैसी अवस्था होती जाती है या
अवस्था बढती है वैसी बुद्धि हो जाती है. इन च्यारो बुद्धियोंपर अच्छी बोधकारक कथावों नन्दी सबकि टीकामे है वह खासकर श्रवण करनेसे बुद्धि प्राप्त होती है भवण करनेकि अपेक्षा मतिज्ञानके च्यार भेद है.
(१) उगृहा-शीघ्रताके साथ पदार्थोंका गृहन करना, (२) इहा-गृहन कीये हुवे पदार्थ का विचार करना. (३) आपय-विचारे हुवे पदार्थ में निश्चय करना
(४) धारणा -निश्चय किये हुवे पदार्थों को धारण कर रखना।
उगृह मतिज्ञान के दो भेद है अर्थ ग्रहन, व्यञ्जन ग्रहन, विरमें व्यसन ग्रहनके च्यार भेद है व्यञ्जन कहते है पुद्ग. लोकोमोन्द्रिय, घाणेन्द्रिय. रसेन्द्रिय. स्पर्शेन्द्रिय. इन च्यारों सायचा. को स्व स्व विषयके पुद्गल मिलनेसे मतिसे ज्ञान होता है कि यह पुद्गल इष्ट है या अनिष्ट है तथा चक्षु इन्द्रियको पुद्गल ग्रहनका अभाव है चक्षु इन्द्रिय अपनेसे दुर रहे हुवे पुद्गलों को देखके इष्ट अनिष्ट पदार्थका ज्ञान कर सकती है इस वास्ते इसे व्यञ्जन ग्रहनमे नही मानी है दुसरा जो अर्थग्रहन है उस्के छे मेद है. (१) धोत्रेन्द्रिय अर्थ ग्रहन-शब्द श्रवणकर उस्के अर्थका
ज्ञान करना. (२) बक्षु इन्द्रिय अर्थ प्रहन रूप देख उसके अर्थका ज्ञान
करना. (३) घ्राणेन्द्रिय अर्थग्रहन-गन्ध सुँघनेसे उस्के अर्थको
प्रहन करना.