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संक्षिप्त जैन इतिहास |
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पड़ी थी। इस घटना से दो वर्ष पहले चीनी यात्री ह्यूनत्साङ्ग पल्लव राजाकी राजधानी कांचीमें आया था। उसने यहांके निवासियों की वीरता, सत्यप्रियता, विद्यारसिकता और परोपकार भावकी बहुत प्रशंसा की है। उसके समयमें इस नगर में लगभग एकसौ मठ थे, जिनमें दस सहस्रसे अधिक भिक्षु रहते थे । लगभग इतने ही मंदिर जैनोंके थे।' पलबोंकी एक अन्य राजधानी कृष्णा जिलेमें धरणीकोटा नामक नगर था, जिसका प्राचीन नाम घनकचक बतलाया जाता है । त्रिलोचन पल्लवकी यही राजधानी थी। दूसरी-तीसरी शताब्दिमें यहांके किलेको जैनों के समयमें मुक्तेश्वर नामक राजाने बनायाथा | कांचीनगर जैनधर्मका प्राचीन केन्द्रीय स्थान था। चीनी यात्री ह्युनत्सांग के समय में भी यहां जैनोंका प्राबल्य काञ्चीमें जैनधर्म | था । दिगम्बर जैन और उनके मंदिरोंकी संख्या अत्यधिक थी । जैन साहित्य से भी कांचीपुरमें जैनधर्मके प्रधान होने का पता चलता है। यहांका जैन संघ उत्तर भारत के जैनियोंको भी मान्य था । प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री भट्टाक लंकदेवने यहीं राजा हिमसीतलकी सभा में बौद्धों को परास्त किया था । पल्लव वंशके कई राजाओंका सम्पर्क जैनधर्मसे रहा था। नंदिपल्लबके वेदल शिलालेख एवं अर्काट जिलेके अन्तर्गत तिन्दिवनम् तालुके से प्राप्त एक अन्य पल्लव शिलालेख से पल्लवों द्वारा जैनधर्म संरक्षण वार्ताका समर्थन होता है। तामिळ
पल्लव राजा और जैनधर्म |
१- लाभाई०, पृ० २९० २ - ममे प्राजेस्मा०, पृ० २३. ३- महि०,
पृ० ४७४. ४ - जैसा ई० पू० ३०
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