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गङ्गा राजवंश।
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धर्मकी इस उक्तिको चरितार्थ कर दिखाया था कि • जे कम्मे सुगते धम्मे सुरा' अर्थात् जो कर्मवीर हैं वही धर्मवीर होते हैं।' राष्ट्रकूट साम्रज्यके पतन एवं मारसिंहकी मृत्युको देखकर
उससे लाभ उठाने के लिये वे सब ही राजा राजमल्ल (राजविद्रो- चौकन्ने होगये जिनको मासिंहने अपने हीका शमन । ) अधीन किया था और जो अपनी स्वाधीनता
प्राप्त करने के लिये छटपटा रहे थे। उनमें से कई एक प्रगट रूपमें गङ्गाजामों के विरोधी रन गये । मासिंहके दोनों पुत्रों-राजमल्ल मौर कपाङ्गके जीवन भी संकट में माफँसे । किन्तु गङ्ग राजकुमारों के इस संकटापन्न समय पर उनकी प्रजा और उनके सरदारोंने उनकी सहायता जी-जानसे की। दोनों भाई एक सुरक्षित स्थान पर भेज दिये गये। स्वामि वात्सल्य का भाव उस समय गणवाडीमें सर्वोपरि था। रकसगङ्ग के संरक्षक बोयिगकी कन्या सायिये उसी भावसे प्रेरी हुई माने पति के साथ रणङ्गणमें पहुँची
और वीरगतिको प्राप्त हुई। ऐसे और भी उदाहरण हैं और इन्हीं के कारण गङ्गाज्यका प्रताप अक्षुण्ण रहा। इस समय गङ्गराजा मोके विरुद्ध हुये शासकोंमें दो विशेष उल्लेखनीय हैं (१) पञ्चदेव और (२) मुडु राचय्य । महासामन्त पञ्चलदेव पुलिगेरे-बेल्वोल मादि तीस ग्रामों का शासक था। उसने मारसिंहके मरते ही अपनेको स्वाधीन घोषित कर दिया । और वह सन् ९७४ से ९७५ तक स्वाधीनरूपसे राज्य करने में सफल हुमा। किन्तु चालुक्य तैल और
१-मैकु०, पृष्ठ ४७: गह पृष्ठ १०७-१०८ व जैसा ई०, पृ०५६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com