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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
मा० ने इन स्तंभोंकी खूब प्रशंसा लिखी है। इन मण्डाके स्तंभोंके अतिरिक्त मला भी स्तंभ बनाये गये थे। वह स्तंभ दो प्रकारके थे
(१) मानस्तंभ, (२) ब्रह्मदेवस्तम्भ । मानस्तंभोंमें कार चोटी पर एक छोटीसी वेदिका होती थी जिसमें चतुमुखी जिन प्रतिमा बिराजमान रहती थी। ऐसा एक स्तंभ पार्श्वनाथवस्ती' के सन्मुख श्रवणबेलगोलमें है। ब्रह्मदेव स्तम्भों में चोटी पर ब्रह्मकी मूर्ति स्थापित होती थी। जसे कि गंग राजा मारसिंहके सम्मानमें सन् ९७४ ई०का बना हुमा 'कुगे ब्रह्मदेव स्तंभ' है । और सन् ९८३ ई० में चामुण्डराय द्वारा निर्मापित 'त्यागदब्रह्मदेव स्तम' है । यह स्तम्भ एक समूचे पाषाणका बना हुआ है। और इसके नीचले भागमें नकाशीका मनोहर काम होरहा है । इसीपर एक ओर चामुण्डराय
और उनके गुरु श्री नेमिचंद्राचार्यकी मूर्तियां अंकित हैं। जो बेल इसपर उकेरी हुई है उसका सादृश्य अशोके प्रयागवाले स्तंभ पर अंकित बेलसे है।' गङ्ग-शिल्पकी एक अनूठी वस्तु उनके बनवाये हुये 'वीरकल'
थे। यह शिलापट अत्यन्त चातुर्यसे वीरोंकी वीरकल। स्मृतिमें अंकित किये जाते थे। इनपर
बहुधा संग्रामके दृश्य उमेरे हुये होते थे मौर लेख में किसी वीरके शौर्य का बखान होता था। क्याथनहल्लि
और तयलरके वीरकलोंगर बड़े २ दातोंवाले सुंदर हाथी अङ्कित हैं, जिनके गलोंमें माकायें झुलती हुई दर्शाई हैं । अतुकुरमें सम्राट
१-गंग०, पृष्ठ २३७-२३९ ।
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