Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 186
________________ संक्षिप्त जैन इतिहास । KICHENNNXNNNNAKAMANANUSINHANNXN.......... N ANRAKSATIAWINNION सम्राटके सेनापति थे । वे बाहमनी सुलतान के मुकाबिलेमें बहादुरीसे कड़े और मुसलमानों के भाक्रमणसे साम्राज्यकी रक्षा की, जिसके कारण उनको प्रभाव और शक्ति बढ़ गई। कहते हैं कि मौका पाकर उन्होंने विजयनगर राजसिंहासनपर अपना अधिकार जमा लिया। कर्णाट और तेलिंगाना देशमें उस समय वह सर्वश्रेष्ट पराक्रमी और शक्तिशाली योद्धा थे। कांची उनके राज्यके ठीक वीचमें थी। परन्तु उनका राज्य अधिक समयता नहीं टिका । भाखिर उनके वंशज कृष्णराय आदि राजाओंके राजमंत्री होकर रहे।' ८-धरणीकोटाके जैन राजा-कृष्णा जिलेके धरणीकोटा नामक स्थानसे जिन रामाओंने १२ वीं-१३ वीं शताब्दिमें गज्य किया था, वे जैनी थे । यन मंडलवाले शिलालेखसे इन राजाओं में से छै राजाओं के नाम इस प्रकार लिखे मिलते हैं । (१) कोटभीमराय, (२) कोटवेतराय सन् ११८२, (३) कोटभीमगय द्वि०, (४) कोटकेनगय द्वि० मन् १२०९, (५) कोररुद्रराय (६) कोटवेतराय। अंतिमराजा कोटवतरायने वाङ्गलके राना गनपतिदेव और रानी रुद्रम्माकी कन्या गनपन्दवासे विवाह किया था। राजा गनपतिदेव जैनियों का विरोधी था। उसने अपनी कन्या इस दुष्ट भभिप्रायसे वेतमयको यादी थी कि वह भी नियों का विरोधी होजाय । परिणामतः गनपतिकी मनचेती हुई-गनपनवाका पुत्र प्रारुद्र वेतरायके पश्चात् राज्याधिकारी हुमा । उसने जैन धर्मको त्याग कर अपनी माताका बामणधर्म स्वीकार किया था। मालम होता है कि १-कु०, पृ. १५१-१५३. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 184 185 186 187 188 189 190 191 192