Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 189
________________ तत्कालीन छोटे राजवंश। [१६३ स्थान्तरित की गई थी। तिरूमलय पर्वतके शिलालेखमें इस वंशके तीन राजाओं के नाम इस प्रकार मिलते हैं। (१) एलिनीया यवनिका, (२) राजराजपावगन, (३) व्यामुक्तश्रवणोज्वल या विदुगदलगिय पेरूमक। ये सब जैनधर्मानुयायी थे। इनमें से पहले राजा एलिन यवनिकाने भरह मुगिरि (अर्थात् माहतों के सुन्दर पर्वत ) तिकमलय पर्वतपर पद्म यक्षिणीकी मूर्तियां स्थापित की थी। इन मूर्तियों का जीर्णोद्वार अंतिम राजा व्यामुक्त श्रवणोज्वलने किया था। पहले राजा एलिन यवनिकाके नामसे ऐसा भासता है कि यह राजा विदेशी थे। सन् ८२५ में इस वंशके अंतिम राजा चीरामल पेरूमनक विषयमें कहा जाता है कि वह मक्का गये थे। इस उल्लेखसे उनका भरवदेशसे सम्बन्ध होना स्पष्ट है। मकामें पहले ऐसे मंदिर थे जिनमें मूर्तियों की पूजा होती थी। श्रवणबेलगोलके एक मठाधीशने पहले यह बताया था कि दक्षिण भारतमें बहुतसे नैनी भरव देशसे आकर बसे थे मतएव बहुत संभव है कि यह राजा मूलमें मरबदेशके निवासी हों। इस प्रकार संक्षिप्त रूपमें तत्कालीन छोटे-छोटे राज्योंका पर्णन है। अपने राजामोडी तरह यह मण्डलीक सामन्त मी जैन धर्मके प्रचार में तल्लीन हुये मिलते हैं। निस्सन्देह जैन धर्मकी शरण १-पूर्व० पृष्ट ७९ व ... २-पूर्व पृष्ट १९, ३-ऐरि०, मा० ९ पृ. २८४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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