Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 180
________________ १५४] संक्षिप्त जैन इतिहास। चोल राजाओंके प्रभावमें आने के कारण उन्हें ऐसा करना पड़ा होगा। ४-कोङ्गल राजवंश-इस वंशके राजा एक समय मैसूर प्रान्तके मर्फलगुड़ तालुक और कुर्गदेशके पंचव-महाराय। येलु साबीर देश पर राज्य करते थे । पनसो. गेके युद्धमें चागल्वोंके विरुद्ध राजराज चोलकी ओरसे पंचव-महागय वीरतापूर्वक लड़े थे, जिसके कारण प्रसन्न होकर राजराज चोलने उनके शीशपर मुकुट बांधकर क्षत्रिय शिखामणि. कोङ्गव' उपाधिसे उन्हें अलंकृत किया था और उन्हें मालवि प्रदेश भेट किया था। पंचव -महाराय का एक शिलालेख ( सन् १०१२ ) बलमुरे नामक स्थानसे प्राप्त हुआ है, जिससे प्रगट है कि वह राजराज चोलके चरणकमलों का भ्रमर था, जिन्होंने उसे वेङ्गिण्डल और गंग मण्डलका महादण्डनायक नियुक्त किया था उन्होंने पश्चिमीय तटवर्ती देशों को विजय किया था, अर्थात् सन्मोंने तुतुब, कङ्कण और मल्यको अपने आधीन किया था। ट्रावनकोरके राजा चेम्मको संग्राम-भूमिसे भगा छोड़ा था । और तेलुगों और रट्टिगोंको भी खदेड़ा था। इस उल्लेखसे उनके शौर्य और पक्रपका परिचय प्राप्त होता है। कोङ्ग व वंशके यही मादि पुरुष थे । इनके पश्च त् हुये राजाओंमें अदत्तरादित्य नामक प्रताप शाली था। उसने सन् १०६६ से ११०० राजा अदत्तरादित्य । ई०तक राज्य किया था। वह शिलालेखोंमें पंच महाशब्द भोगी'-'महामण्डलेश्वर''मोरेयूर-पुरा-धीश्वर '-'प्राची-दिक सूर्य'-'सर्य वंश-चूड़ामणि' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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