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संक्षिम जैन इतिहास.।
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साथ लगभग सन् १९१५ ई० के होगया था; न्तु उनकी संतान उसक पश्चात् भी जीवित रही। अग्नी स्वाधीनता स्थिर रखनेक लिये कोङ्गारव रामओंने होयसलवंशके राजाओं के साथ वीरतापूर्वक मोरचा लिया था। सन् १०२२ में तो उन्होंने नृाकाम पोयसळ पर बढ़कर माक्रमण किया था। और रणक्षेत्रमें उसके पाणोंको संकटमें डाल दिया था । कदाचित् सेनापति जोगय्य उनकी सहायताको न माते तो वह शायद ही रणभू मेसे जिन्दा लौटते । सन् १०२६ ई० में भी कोनाव राजाओंने मनि नामक स्थान पर होयसलोंको परास्त किया था, किन्तु मन्ततः वह होयसलोंके सम्मुख टिक न सके और अपने राज्यसे हाथ धो बैठे।
५. पुन्नाट-राजवंश । मैसूर के दक्षिण की ओर अवस्थित मति प्राचीन पुन्नाट राज्य था । भद्रबाहु श्रुत केवलीने श्रवणबेलगोलसे भागे पुन्नाट राज्यमें जाने का आदेश आने संघको दिया था। ( ' संघोपि समस्तो गुरुवाक्यतः दक्षिणापथ देशस्थ पुन्नाट विषयम् ययो'-हरिषेण ) यूनानी लेखक टोल्मीने भी पुन्नाट का उल्लेख Pounnata · पौन्नट' नामसे किया है । ग़ज़ यह कि पुन्न टराज्य अत्यन्त प्राचीनकालसे प्रसिद्धि में मारहा था; किन्तु इस राज्यके गजाओंका उल्लेख सबसे पहले गङ्गवंशी राजा भविनीतके समयमें हुआ मिलता है। वह छै सहस्रका एक प्रांत था और उसकी राजधानी किस्थिपुर थी; जो वर्तमानमें कित्तुर नामक स्थान है। अविनीतके पुत्र दुर्विनीतकी रानी पुन्नाट-राजा स्कन्दवर्माकी
१-मैकु०, पृ. १४५.
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