Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 181
________________ तत्कालीन छोटे राजवंश । ` कहा गया है । इन उपाधियोंसे अदत्तर । दित्यका महान् व्यक्तित्व स्वतः प्रगट होता है। उनके एक मंत्री नकुलार्य नामक थे, जो चार भाषाओं में लिख-पढ़ सकते थे । [ १५५ मदत्तरादित्य के पहले हुये राजाओं में (१) वादिम, (२) राजेन्द्र चोल पृथ्वीमद्दाराज (सन् १०२२); (३) राजेन्द्र चोल कोंगर (१०२६) का उल्लेख मिलता है । अदत्तरादित्य के उत्तराधिकारी त्रिभुवन मल्लचोक कोङ्गलदेव थे । ये सभी राजा जैनधर्मानुयायी थे । राजा मवत्तरादित्यने मूलसंघ कानूरगण तगरीगल गच्छ के गंधविमुक्त सिद्धांतदेवाचार्य के उपदेश से एक जिनमंदिर निर्माण कराया था, जिसे उन्होंने सिद्धांतदेव प्रभाचंद्र उदयसिद्धांत रत्नाकरकी सेवामें अर्पित किया था । तथा उसके लिये भूमि भेंट की थी । महामंडलेश्वर त्रिभुवनमल्ल चोल कांगळदेव के सेवक रावसेत्रक पोते अदगदित्य के अधीन सरदार बुवेय अदिनामक थे । उन्होंने जैनाचार्य श्री पद्मनंददेवकी सेवामें भूमिदान किया था । सारांशतः कोङ्गाल्व राज्यमें राजा और प्रजा के संयुक्त उद्योगसे जैनधर्मका उल्लेखनीय प्रकाश हुआ था । कोङ्गख व जैनधर्म । सन् १३९० में किन्हीं जैनाचार्योंने मुक्कुर ( कुर्ग ) नामक स्थानकी वस्तियोंका जीर्णोद्धार कराया था । उन मंदिरोंके लिये कोङ्गाल्व सुगुणिदेवीने दान दिया था । इस उल्लेख से राष्ट है कि कोङ्गाल्व राज्यका अन्त चोलोंके अन्य राजा । १ - ममैप्राजैहमा०, पृ० २८४-२८६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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