Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 179
________________ तत्कालीन छोटे राजवंश । [ १५३ अजित सेनकी स्मृतिमें एक स्मारक स्थापित किया था । यह राजा मयूरवर्मा का पुत्र तथा जैनागमरूपी समुद्रकी बृद्धिमें चन्द्रमा के समान था । (ममै जैहमा० २९१ ) इन उल्लेखों से राष्ट है कि सान्तारवंशके राजाओंके समय जैनधर्मका परम उत्कर्ष हुआ था। जैन सिद्धांतका ज्ञान जनसाधारणमें प्रचलित था । › ३ - चांगल्व राजवंश - बांगला वंश के राजाओंने दीर्घकाल तक मैसूर जिलेके पश्चिमी भाग और कुर्ग देशपर शासन किया था। उनका मूल आवास चङ्गवाड़ नामक प्रदेश था, जो वर्तमान के हुन्सूर तालुक जितना था | चांगल्व अपनेको चन्द्रवंशी यादव कहते और बताते हैं कि द्वारावती में चङ्गात्र नामक राजा राज्य करते थे वे उन्हीं की सन्तान है । शिलालेखों में उन्हें ' मण्डलीक - मण्डलेश्वर ' कहा गया है।' वे मुख्यतः जैन मतानुयायी थे, जैन शिलालेखों में उनका उल्लेख हुआ मिलता है। पंसोगे के चौसठ जिन मंदिरों के विषय में कहा जाता है कि उन्हें राम-लक्ष्मणने बनवाया था - चांगल्ब राज्यकी पूर्वी सीमा वहीं तक थी। इन मंदिरोंपर जिन जैनाचार्यो का अधिकार था, वही चाङ्गल्व राजाओं के गुरु थे । चाङ्गत्वों के प्रसिद्ध राजा नन्नि चाङ्गल्व राजेन्द्र चोल थे । उन्होंने पनसोगेमें एक जिन मंदिर निर्माण कराया था। महाराज कुल्लोतुंग चांगल्व महादेव के मंत्री के पुत्र चन्नवोग्रसने गोम्मटस्वामीका जीर्णोद्धार कराया था। जैन उपरान्त इस वंश के राजा शैव मतानुयायी होगये थे। संभवतः १ मे कु०, पृ० १४३ - १४४ २ - ममे प्राजेस्मा, पृ० २०१ - २०३ च २५०-३२८. 3 - मैकु०, पृ० १४१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat चङ्गालव । www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192