Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 177
________________ तत्कालीन छोटे राजवंश। [१५१ मध्ययन उन्होंने विशेष रूपसे किया था। स्वयं उनके रचे हुये 'भष्ट-विद्यार्चना-महाभिषेक' और ' चतुर्भक्ति' नामक ग्रंथ थे। वह इतनी विद्यासम्पन्न थीं कि लोग उन्हें 'शासनदेवता' कहते थे। वह द्राविड़ संघ नंदिगण अरुंगलान्वयी श्री अजितसेन पंडिनदेव अथवा वादीमसिंहकी शिष्या श्र विका थीं। उनके भाई श्री वल्लभ राजाने आचार्य वासुपूजा सिद्धांतदेवके चरण धोकर दान दिया था। चत्तलदेवीने भी कमलभद्र पंडितदेवके चरण धोकर 'पंचकूटजिन मंदिर के लिये भूमि दी थी। पम्पादेवीकी पुत्री वांचलदेवी भी अपनी विद्या और दानशीलताके लिये प्रसिद्ध थी। वह नाग. देवकी भार्या तथा पाडल तेलकी माता थीं। जिनधर्मकी वह पाम भक्त थीं। उन्होंने कवि पोनकृत 'शांतिपुराण' की एक सहस्त्र प्रतियां लिखाकर बांटी थीं तथा १५०० जिनमूर्तियां सुवर्ण और रत्नों की निर्माण कराई थीं। इन उल्लेखोम्मे सान्तार गज्यमें शिक्षाकी उन्नति और महिलाभोंका सम्मान एवं उनकी दानशीलताका पता चलता है। विक्रम सान्तारदेव भी जिनेन्द्र भक्त थे। उन्होंने 'पंचकूट जिनालय' के लिये अजितसेज पण्डित देवके चरण धोकर भूमि प्रदान की थी। तौलपुरुष सान्तार राजाकी रानी पालिपक्कने अपनी माताकी स्मृतिमें पाषाणका एक जिनमंदिर बनवाया था, जो ‘पालिपक-वस्ती' के नामसे प्रसिद्ध है और उन्होंने उस मंदिरको दान भी दिया था। त्रैलोक्यमल्ल वीर सांतारदेवने हूमसमें नोकियवे' नामक जिनमंदिर निर्माण कराया था। उनकी रानी चागलदेवीने मंदिरके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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