Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 176
________________ १५० ] संक्षिप्त जैन इतिहास | और पुत्र तैलपदेव एवं पुत्री वीरवरसी थी । तैलपदेवकी महादेवी केलयव्वरसी थीं, जिनके पुत्र वीरदेव थे। उनकी गंगवंशी वीर मद्दादेवी से भुजबल सांतारका जन्म हुआ था । इनको चत्तकदेवी भी कहते थे । इनके अतिरिक्त इस वंश के और भी राजा थे । लिखा जाचुका है कि सांतार राजा मूलमें जैन धर्मानुयायी थे । जैन धर्मकी उन्नति और प्रभाव - विस्तार के लिये उन्होंने अनेक कार्य किये थे । दक्षिण भारत में एक समय यह पहले ही सांतार राजा और जैन धर्म । जैनियोंके मठ तीन स्थानों अर्थात् (१) श्रवणबेलगोल (२) मलेयूर और (३) हूनसमें स्थापित और अतीव प्रसिद्ध थे । इनमें से हूमस - मठको सांतार राजा जिनदत्तायने स्थापित किया था । इस मठके गुरु श्री कुन्दकुन्दान्वय और नन्दि संघ से सम्बन्धित रहे हैं। इसी मठके आचार्य श्री जयकीर्तिदेवसे सरस्वती- गच्छ प्रारम्भ हुआ था। श्री जिनदत्तरायके गुरु आचार्य सिद्धांतकीर्ति की इसी मठके स्वामी थे । निस्सन्देह इस मठके आचार्योंने जैन धर्मकी अपूर्व सेवायें की थीं। उपरांत सांतार राजाओंमें राजा तैलसांतार जगदेक एक प्रसिद्ध दानशीक शासक थे । उनकी रानी चत्तलदेवी थीं, जिनसे उनके पुत्र श्री वल्लमराज विक्रम सांतारका जन्म हुआ था । २ यह राना मी अपने पिताकी भांति एक महान दानवीर था । इसकी पुत्री पम्पादेवी परम विदुषी थी । 'महापुराण' का १ - ममेजेस्मा०, पृष्ठ ३१०. २ - भमेजेस्मा०, पृष्ठ १६२: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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