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संक्षिप्त जैन इतिहाँस ।
स्थापित की थी। प्रारम्ममें इस वंशके सभी राजा जैनी थे, परन्तु उपरान्त वे लिंगायत मतके भनुयायी होगये थे। और भररस वोडेयरके नामसे प्रसिद्ध हुए थे; जैसे कि आगे लिखा जायगा। लिंगायत होनेपर भी उनकी रानियाँ जैनधर्मानुयायी ही थीं। उनका अस्तित्व १६ वीं शताब्दिसक मिलता है, जिसके बाद उनका राज्य केलड़ी राज्यमें गर्मित होगया था। प्रारम्भिक सान्तार राजाओंमें श्रीकेसी और जयकेसी भाई माई
थे, और श्रीवेशीका पुत्र रणकेशी था । सान्तार वंशके अन्य राजा जगेसी समय सान्त लिगे प्रान्त पर राजा। राष्ट्रकूट राजा नृपतुङ्ग अमोघवर्षके भाषीन
राज्य करता था। किन्तु इस वंशके राजाओंका ठीक सिलसिला विक्रम सान्तारसे चलता है, जिमके विरुद्ध 'कन्दुकाचार्य' और 'दान-विनोद ' थे। उसे सान्तिलगे प्रान्तमें स्वाधीन राज्य स्थापित करने का गौरव प्राप्त है, जिसकी सीमायें दक्षिण में सूल नदी पश्चिममें तवनसी भौर उत्तरमें बन्दिगे नामक स्थान था । सन् १०६२ व १०६६ में वी शान्तार और उसके पुत्र भुजबल सान्तारने चालुक्य राजाभोंमे सान्तिलगे ।ज्यको मुक्त किया था। इस समयसे सान्तार गजामोंकी शक्ति बढ़ गई थी और वह प्रभावशाली हुए थे। भुजबलके भाई ननि-माता के विषय में कहा गया है कि उन्होंने गंग-राजा बुटुट-पेरम्माडिसे भी अधिक
सम्मान प्रास किया था। बुग स्वयं भाषी दुर चलकर उनसे मिलने 1ोजपने राजसिंहासन पर बराबर मासन दकर
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