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मंतित जैन इतिहास ।
सामने मकरतारण और बल्लिगवेमे • चागेश्वर' नामकी मिनमंदिर बनवाया था। इस मदिरके महातेमे हमसके माच गोविन्द नामक श्रावकने समाधिमरण किया था। वहां अन्य श्रावकों ने भी मल्लेखना व्रत माराधा था। वीर सांतारके राज्यमें दिवाइरनंदि सिद्धांतदेवके शिष्य पट्टनस्वामी नोकप्पा सेठीने 'तत्वार्थसुत्र' पर कनड़ में सिद्धांत रत्नाकर' नामक वृत्ति रची थी, जिसे उसक पुत्र मुल्ल मने लिखा था।
ननि सांतारके राज्यमें पट्टनस्वामी नोश्रया में ठीने पट्टनस्वामी बिनालय' निर्माण कराया और वीर सांतारसे मोमवरी ग्राम प्राप्त करके उसे कुक्कड़वाड़ी ग्राम सहित सकलचंद्र पण्डितदेवके चरण घोकर दान किया । नोकय्य पट्टनस्वामी बड़े धर्मात्मा सज्जन थे । वह · सम्यक्तवाराशि' नामसे प्रसिद्ध थे। उन्होंने म्दुर में सुवर्ण और रत्नोंकी प्रतिमायें निर्माण कराकर स्थापित की थी। और वहां कई सरोवर बनवाए थे।
भुनबल सांतारदेवने कनकनंदि मुनिकी सेवा में हरवरो ग्राम अपने बनवाये हुये जिनालय के लिये दिया था । तौलपुरुष विदयादित्य सांतारने सिद्धांत भट्टारकके उपदेशसे पाषाणका एक जिन मंदिर निर्माण कराया था। मजबलि सांतारने पोम्बु में 'पंचवस्ती' बनवाई। भनन्दृग्में चत्तकदेवी और त्रिभुवनमल्ल सांतारदेवने एक पाषाणकी वस्ती श्री द्रविल-संघ मदुगलान्वयी मजितसेन पण्डितदेव 'वादिघाट्ट' के नामसे निर्माण कराई।' सन् १०९० के करीब कोप्य ग्राममें महाराज मार सांतारवंशीने अपने गुरु मुनि वादीमसिंह
१-ममै प्रास्मा०, पृ. ३१९-१२५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com