Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 165
________________ गङ्ग राजवंश। [१३९ बेट। बुटुगके समयका एक वीरकल मिला है, जिसमें समाके आखेटका दृश्य मङ्कित है । इसमें शिकारी कुत्ते और जंगली सूभरकी लड़ाईका दृश्य बिल्कुल प्राकृतिक और सजीव है। देदृहुंडीके पापाणपर अंकित नीतिमार्गके समाधिमरणका दृश्य भी भावुकता और सनीवताका नमूना है । बेगू के वीरकल में दो वीरों के संग्रामका चित्रण खुब ही हुआ है । इन वीरकलोंसे उस समयके योद्धाओंके अस्त्र-वस्त्र और युद्ध संचालन क्रियाका भी पता चलता है।' वीरकलों के साथ गङ्गोंने छोटी-छोटी पहाड़ियोंकी शकल में 'बेट्ट' नामक इमारतें बनाई थीं। यह 'बेट्ट' खुले हुये सहन होते थे, जिनके चारों ओर पर. कोटा होता था और मध्यमें श्री गोम्मटस्वा. मीकी विशालकाय मूर्ति होती थी। जैन कलाकारों के लिये निस्सन्देह गोम्मटस्वामीकी मूर्ति भाकर्षणकी एक वस्तु रही है। 'बेट्ट' के परकोटेमें प्रायः छोटी-छोटी कोठरियां बनीं होती थीं, जिनमें तीर्थकर भगवानकी प्रतिमाएं विराजमान की जाती थीं। इन 'बेट्टों' के मध्य में विराजित गोम्मट मूर्तियां भी गङ्ग शिल्पकी मद्वितीय वस्तु हैं । श्रवणबेलगोलके विंध्यगिरि श्री गोम्मट-मूर्ति। पर्वतपर वीरमार्तण्ड चावंडगयने सन् ९८३ ई०के लगभग एक अखण्ड पाषाणकी विशा. लकाय मूर्ति निर्माण कराई थी। यह मूर्ति संसारकी द्भुत मा. र्यजनक वस्तुओंमेंसे एक है और देश-विदेशके अनेकानेक यात्री १-पूर्व०, २३९-२४१ ।२- ० पृ. २४१ व २४२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192