Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 168
________________ १४२ ] संक्षिप्त जैन इतिहास।। १२ वीं शताब्दिके प्रारम्भमें किसी समय निर्माण कराया था। शिलालेख नं० ११५ (२६७) से विदित होता है कि सेनापति भातमय्य ने इस मण्डपका कठघरा (हप्पलिगे) निर्माण कराया था। शिलालेख नं० ७८ ( १८२ ) में कथन है कि नयकीर्ति सिद्धांत चक्रवर्तीके शिष्य बसविसेट्टिने कठघरेकी दीवाल और चौवीस तीर्थकरोंकी प्रतिमायें निर्माण कराई थीं और उसके पुत्रोंने उन प्रतिमाओके सम्मुख जालीदार खिडकियां बनवाई। शिलालेख नं. १०३ (२२८) से ज्ञात होता है कि चंगान-नरेश महादेवके प्रधान सचिव केशवनाथके पुत्र चन्न बोम्मरस और नंजरायपट्टनके श्रावकोंने गोमटेश्वर मण्डपके ऊपरके खण्ड (बल्लिाड़) का जीर्णोद्धार कराया। 'कुछ वर्षों के अंतरसे गोमटेश्वरकी इस विशालकाय मूर्तिका मस्तकाभिषेक होता है, जो बड़ी धूमधाम, मस्तकाभिषेक। बहुत क्रियाकाण्ड और भारी द्रव्य-व्ययके साथ मनाया जाता है । इसे महाभिषेक कहते हैं । इस मस्तकाभिषेकका सबसे प्राचीन उल्लेख शक संवत् १३२० के लेख नं० १०५ ( २५४ ) में पाया जाता है। इस लेखमें कथन है कि पण्डितार्यने सात वार गोमटेश्वरका मस्तकाभिषेक कराया था। पंचवाण कविने सन् १६१२ ई० में शांतवर्णि द्वारा कराये हुए मस्तकाभिषेकका उल्लेख किया है, व मनन्त कविने सन् १६७७ में मैसूर नरेश चिकदेवराज मोडेयरके मंत्री विशा १-जेशिसं०, भूमिका पृष्ठ १५-२० व ३५-३६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192