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गङ्गाजवंश।
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'गोम्मटसार' पर एक कनड़ी टीका रची थी। निस्संदेह चामुंडराय जिस प्रकार एक महान योद्धा और रानमंत्री थे, उसी प्रकार साहित्य और चैन सिद्धांतके मर्मज्ञ एक उच्च कोटि के कवि थे।। " चाकुंडराय पुराण" से प्रगट है कि वह एक श्रद्धालु जैन
थे और उनके धर्मगुरु श्री अजितसेनाचार्य धार्षिक जीवन । थे। चावंडरायके पुत्र जिनदेवन् भी उन
भाचार्य के शिष्य थे और उन्होंने श्रवण. बेलगोलपर एक नन मंदिर बनवाया था। शक्तिसम्पन्न होनेपर भी चाकुंडरायने गरीवोंको नहीं भुलाया । वह जनहितके कार्योंको बराबर करते रहे। वह धर्मात्मा, विद्वान् और दानशील थे। खास बात उनके जीवनकी यह थी कि वह प्रगतिशील विद्वान थे । परम्परागत रीतिरिवाजोंके प्रतिकूल भी उन्होंने धर्मवृद्धिके हेतु कदम बढ़ाया था। उनका धार्मिक दृष्टिकोण विशद और समुदार था। यही कारण है कि उन्होंने गोम्मट्टदेवकी विशालकाय देवमूर्तिकी स्थापना करके दर्शन-पूजन करने का अवसर प्रत्येक भक्तको प्रदान किया था। अपनी दर्शन-विशुद्धिको उत्तरोत्तर निर्मल बन ते हुये वह दान और पूनारूप श्रावक धर्मको पालन करनेमें तल्लीन रहते थे। अपनी इस धार्मिकताके कारण ही वह " सम्यक्तर-रत्नाकर" कहलाते थे । जैन धर्मके वह महान संरक्षक थे। धर्मप्रभावनाके लिये उन्होंने अनेक कार्य किये थे । अनेक जिन प्रतिमाओं और जिन मंदिरोंकी उन्होंने प्रतिष्ठा कराई थी, जिनकी शिलाकला मद्वितीय है । शास्त्रोंका प्रचार और उद्धार कराकर एवं पाठशालायें और नन मठ स्थापित कराके ज्ञानका उद्योग किया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com