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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
५-शब्दावतार न्यास-यह पाणिनिसूत्रकी टीका है। इसका उल्लेख भी उपरोक्त शिलालेखमें हुआ है ।
६-शाकटायन सूत्र न्यास-शाकटायन व्याकरणकी टीका । पूर्वोक्त शिला)
७-वैद्यशास्त्र-यह चिकित्साशास्त्र अनुपरा है । ८-छंदशास्त्र ।
-जैनाभिषे-यह भी अनुालय है।' पूज्यगद के पश्च त् मूलसंवमें भाचार्य महेश्वर मादि अनेक
माचार्यों ने माने अस्तित्व, व्यक्तित्व और अवशेष जैनाचार्य । कार्यग्टुत्व गुणों से भैन मकी प्रतिनाको
अक्षुण्ण बनाये रक्खा था। भाचार्य महेश्वरके विषयमें कहा गया है कि वह महाराक्षसोद्वारा पूजित थे।' भट्टाकलङ्कस्वामीने राजा हिमशीतळकी राजसभा में बौद्धोंको परास्त करके जैन धर्म की प्रभावना की थी। उनके समय में बहुतसे जैनी उत्तरकी ओरसे माकर होडमण्डलममें बस गए थे। उन्होंने मण्णमले, मदुरा और श्रवणबेलगोलमें अपनी पल्लियां स्थापित की थीं। मण्णमलैकी जैन पल्लीके कतिाय प्रख्यात् जैन गुरु सन्दुसेन, इन्दुसेन और कनकनन्दि नामक थे। श्रवणबेलगोलके मूलसंघमें सर्वश्री भाचार्य पुष्यसेन, विमलचन्द्र और इन्द्रनन्दि थे, जो संभवतः मालङ्कम्वामीके सहधर्मी और ग्गवंशी राजा श्रीपुरुष और शिवमार द्वितीयके समसामयिक थे। विमलचन्द्रने शैव-पाशुपतादि-वादियों के
१-जैशसं०, भूमिका पृष्ट १४१-१४२. २-जैशि६० मृमिका प. १४०. ३-४-गंग०, पृष्ठ० १९८-९९.
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