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गङ्ग राजवंश । [११९ था, परन्तु उनके भादर्श और सिद्धांत वही थे-उनमें कोई अन्तर न था, अन्तर यदि था तो केवल व्यवहारकी मात्राका । इसीलिये श्रावक के लिये जो व्रत हैं वह अणुव्रत कहलाते हैं । गंगराज्यके श्रावक उनका पालन करते थे। शिलालेखोंसे प्रगट है कि उस समय 'प्रतिमाओं का प्रचलन विशेष था। प्रत्येक श्रावक प्रतिमाधारी होता था और अंसमें सल्लेखना व्रत करता था। सल्लेखना वाका पालन तो उससमय मुनि मार्यिका श्रावक-श्राविका सब हीने किया था। गङ्ग-राज्यके अन्तर्गत जनसाधारणमें शिक्षाका प्रचार भी
संतोषजनक था; यद्यपि शिक्षाका कोई एक शिक्षा। नियमित क्रम नहीं था; परन्तु शिक्षाकी
प्रणाली कठिन नियंत्रण और मनुशीकनपर भवलंबित थी। लोग इहलोक और परलोकको सफल बनाने के लिये ज्ञानोपार्जन करना भावश्यक समझते थे। बहुत से लोग अपनी ज्ञानपिपासाको तृप्त करने के लिये शिक्षा ग्रहण करते थे। साधारणतः प्रत्येक ग्राममें एक गृहस्थ उपाध्याय रहता था, जिसके घ में रहकर विद्यार्थीगण शिक्षा लेते थे। प्रारंभिक शिक्षा इन उपाध्यायों द्वारा प्रदान कीजाती थी। उच्चशिक्षाके लिये केन्द्रीय स्थानों में विद्यापीठ' 'मठ' 'अग्रहार' और 'पटिक' नामक उच्च शिक्षालय थे । इन शिक्षालयोंमे उच्चकोटिकी धार्मिक, दार्शनिक और लौकिक शिक्षा प्रदान की जाती थी। इसके अतिरिक्त देशमें विद्वत्सम्मेलन भी हुमा करते थे, जिनक द्वारा सांस्कृतिक ज्ञानकी वृद्धि हुमा करती
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३-जैशिसं० देखो ।
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